गुजरात में भारतीय जनता पार्टी अब पूरी तरह मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर केन्द्रित हो चुकी है। मोदी पिछले आठ वर्षो से धीरे-धीरे सरकार और संगठन पर इस कदर हावी हो चुके हैं कि उनसे बडे कद के कई नेता दरकिनार हो चुके हैं या यूं कहें कि उन्होंने राजनीति से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले ली है। ये वो नेता थे, जिनके कंधों पर कभी गुजरात भाजपा चलती थी। यहां तक कि गुजरात में भाजपा को पहली सफलता दिलाने वाले ए.के. पटेल आज खुद अकेले रह गए हैं। भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 6 अप्रेल, 1980 को हुई और उसने पहली बार लोकसभा चुनाव 1984 में भाग लिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर के बीच पूरे देश में भाजपा को मात्र दो सीटें मिलीं। इनमें एक थे हनमकुंडा (आंध्रप्रदेश) से चंदूपटला जंगारेड्डी, तो दूसरे थे मेहसाणा (गुजरात) से ए.के. पटेल। कांग्रेस के प्रति जबर्दस्त लहर के बीच गुजरात में पटेल ने भाजपा को पहली सफलता दिलाई, लेकिन आज इस पार्टी में पटेल का कोई "नामलेवा" नहीं रह गया है। पंद्रह माह पहले तक ए.के. पटेल की तूती बोलती थी, लेकिन मोदी की खिलाफत ने उनका राजनीतिक कैरियर चौपट कर दिया। गुजरात भाजपा में 1984 में अकेले चले ए. के. पटेल आज खुद अकेले रह गए हैं। मेहसाणा में रह रहे ए.के. पटेल ने स्वीकार किया कि आज वे किसी पार्टी से जुडे हुए नहीं हैं और न ही उनकी वर्तमान राजनीति में कोई दिलचस्पी है। उनकी राजनीतिक पारी अब समाप्त हो चुकी है। मोदी ने गुजरात में 7 अक्टूबर, 2001 को सत्ता संभाली। इससे पहले भी वे संगठन में काम कर चुके थे। उन्होंने जिन प्रदेशाध्यक्षों के हाथ के नीचे काम किया, आज वे सारे दरकिनार हो चुके हैं। फिर वो केशूभाई पटेल हों या काशीराम राणा। जहां तक शंकरसिंह वाघेला का सवाल है, तो वे भी गुजरात भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं और उन्हें पार्टी से 1996 में निकाला गया था, लेकिन इसके पीछे भी कहीं न कहीं कारण मोदी को ही माना गया था, जो उस समय संगठन में थे। केशूभाई पटेल 90 के दशक में कच्छ-सौराष्ट्र सहित पूरे गुजरात में "गुजरात ना नाथ" के रूप में उभरे थे, लेकिन 2001 में उन्हें हटा कर मुख्यमंत्री पद पर मोदी को आरूढ करने से वे नाराज हो गए और उनकी गिनती असंतुष्ट के रूप में होने लगी। पिछले चुनाव-2004 में पटेल ने चुनिंदा क्षेत्रों में चुनाव प्रचार भी किया, लेकिन 2007 के विधानसभा चुनाव में वे न केवल पूरी तरह निष्क्रिय रहे, अपितु असंतुष्टों की गतिविधियों के केन्द्र भी बने। 2007 के विधानसभा चुनाव में जब सौराष्ट्र-कच्छ में पटेल का प्रभाव नहीं पडा, तो वे शांत हो गए। इस चुनाव में पटेल पूरी तरह निर्वासित राजनेता के रूप में हैं। इतना ही नहीं केशूभाई पटेल ने गत 27 मार्च को सोमनाथ में जो बयान दिया, उसका सीधा तात्पर्य यही है कि वे अब राजनीति के मैदान से बाहर हो चुके हैं। पटेल ने सोमनाथ में भगवान कृष्ण के निर्वाण दिवस पर आयोजित गोलोकधाम महोत्सव में कहा कि गोकुलग्राम के बाद अब गोलोकधाम उनका भाग्य है।
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