Thursday, April 9, 2009

धर्मनिरपेक्षता को फिर परखा जाएगा राजनीतिक कसौटी पर

लोकसभा चुनाव में क्या धर्मनिरपेक्षता को फिर राजनीतिक कसौटी पर परखा जाएगा। साम्प्रदायिकता के आरोपों से घिरी भाजपा ने जिस तरीके से इस मुद्दे को उठाकर कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल खडे किए हैं उससे मामले के तूल पकडने की संभावना बढ गई है। भाजपा की तरफ से गुरूवार को पांच सवाल दागे गए। उसमें 84 के सिख दंगों से लेकर शाहबानो मामले पर कांग्रेस को कठघरे में खडा कर भाजपा ने साफ संकेत दे दिया कि इसे चुनावी मुद्दा बनाने का मन बना लिया है।राजनीतिक धुरी पर धर्मनिरपेक्षता की पहेली अभी तक नहीं सुलझ पाई है। देश के राजनीतिक दलों को साम्प्रदायिक और गैरसाम्प्रदायिक घटक में बांटकर रखा गया है। गठबंधन के इस दौर में कई दल ऎसे हैं जिन्हें अवसर के हिसाब से पाला बदलने में महारत हासिल है। भाजपा की तरफ से यह सवाल उठाए जाने के बाद ऎसे दलों की मुश्किल बढ सकती है। सूत्रों ने बताया कि भाजपा ने चुनाव के दौरान यह मुद्दा उछालकर उन क्षेत्रीय दलों की परेशानी बढा दी है जो राजग, संप्रग और थर्डफ्रंट जैसे तीनों विकल्पों को लेकर चल रहे थे।हालांकि भाजपा ने निशाना कांग्रेस पर साधा है, लेकिन उसकी रणनीति एक तीर से दो शिकार करने की है। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने दो टूक कहा कि कांग्रेस दूध की धुली नहीं है। वह हमेशा से साम्प्रदायिक भावनाओं से खिलवाड करती आई है, यह राजनीति उसे महंगी पडेगी। भाजपा ने धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा इस समय इसलिए उठाया क्योंकि इससे उसे दो हित सधते दिख रहे हैं।साम्प्रदायिकता के नाम पर जिस तरह मतदाता उससे बिदकते हैं उसी हाल में वह कांग्रेस को खडा करना चाहती है। इसके लिए भाजपा ने उन तमाम मुद्दों को छांटा है जो कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष छवि को बट्टा लगा सकते हैं। दूसरी तरफ भाजपा को लगता है कि यह मुद्दा उछलने से क्षेत्रीय दलों की हालत भी पतली हो सकती है। चुनाव के ऎन वक्त पर भाजपा रणनीतिक तरीके से धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे को जिस तरह से उछल रही है उससे मामला गरमा सकता है।

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