मप्र से राज्यसभा में चुनकर आए कप्तान सिंह सोलंकी यहां भी कप्तानी पारी खेलने की तैयारी में हैं। उनकी चली तो भाजपा के राज्यसभा सांसदों का "जिला बदल" हो सकता है। एक जिले में दो सांसदों की मेहरबानी का फार्मूला उन्हें रास नहीं आ रहा। वह ऎसी व्यवस्था चाहते हैं कि पार्टी के हर राज्यसभा सांसदों के हिस्से में वह क्षेत्र आए जहां हार का सामना करना पड़ा है। इसकी शुरूआत वह खुद करेंगे और इस कड़ी में भिण्ड, मंदसौर और खंडवा में से किसी एक क्षेत्र को गोद ले सकते हैं।अभी सब घालमेल चल रहा है। भाजपा के नौ राज्यसभा सांसद हैं और सभी अपनी मर्जी से क्षेत्र का चयन कर खर्च कर रहे हैं। ऎसे में कई संसदीय क्षेत्र में विकाश राशि की वर्षा हो रही है तो कई क्षेत्र सूखे पड़े हैं। इसमें ग्वालियर सबसे बड़ा अपवाद हैं, उसे तीन तरफ से पैसा मिल रहा है। लोकसभा सीट भाजपा के पास है, इस लिहाज से सांसद मद की वह राशि उसे मिल ही रही है। दूसरी ओर राज्यसभा सांसद माया सिंह और प्रभात झा भी अधिकतर राशि वहीं खर्च कर रहे हैं। ग्वालियर की तरह इन्दौर का हाल है। भाजपा सांसद सुमित्रा महाजन के अलावा इस क्षेत्र पर राज्यसभा सदस्य नारायण सिंह केशरी अपने मद का पैसा बरसा रहे हैं। छिंदवाड़ा को प्यारेलाल खंडेलवाल और अनुसुईया उइके ने गोद ले रखा है। बाकी बचे रघुनंदन शर्मा, विक्रम वर्मा वह भी अपने हिसाब से खर्च कर रहे हैं। कप्तान को यह नीति नहीं सुहा रही। मिल रहे संकेत इस व्यवस्था में बदलाव का इशारा कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार कप्तान की मंशा राज्यसभा सांसदों की हिस्सेदारी उन क्षेत्रों में बढ़ाने की है जहां कमजोर पड़ी पार्टी को मजबूती मिल सके।उन्होंने ऎसी रणनीति बनाई है जिसमें किसी के नानुकुर करने की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी। इसकी शुरूआत वह खुद करेंगे और इसके लिए तीन ऎसे क्षेत्रों के नाम पर विचार-विमर्श हो गया है जहां पार्टी ने अपना आधार खोया है। भिण्ड उनका गृह क्षेत्र है, लेकिन भाजपा की सूची में वह नीचे है। दूसरी सीट मंदसौर है जो भाजपा का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन इस बार हाथ से फिसल गई। तीसरी सीट खंडवा है जहां पार्टी को नए सिरे से काम करने की जरूरत महसूस की जा रही है। कप्तान की चली तो मप्र में राज्यसभा के भाजपा सांसदों की चल रही मनमर्जी पर पानी फिर सकता है।
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