लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के बाद काफी हिचकिचाहट के बाद विपक्ष का नेता बनने के लिए राजी होने वाले वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के बारे में पार्टी ने साफ किया कि वह इस पद पर पूरे कार्यकाल (पांच साल)के लिए बने रहेंगे। हालांकि, सूत्र बताते हैं कि आडवाणी पूरे पांच साल इस पद पर नहीं रहेंगे। और बहुत संभव है कि सुषमा स्वराज लोकसभा विपक्ष की नेता बनें। गौरतलब है कि लोकसभा में विपक्ष की उपनेता के रूप में सुषमा स्वराज और राज्य सभा में अरुण जेटली की भूमिका से आडवाणी बेहद खुश हैं। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे 81साल के आडवाणी के राजनीति से सन्यास लेने की अटकलों पर विराम लगाते हुए बीजेपी ने ऐलान किया कि विपक्ष के नेता पद पर उनका चुनाव बिना किसी समयसीमा के किया गया है। सदन में बीजेपी की उपनेता सुषमा स्वराज ने कहा, हमने उन्हें (आडवाणी को ) पूरे कार्यकाल के लिए चुना है। हमने उन्हें किसी समयसीमा के लिए विपक्ष का नेता नहीं चुना है। मैं उनकी उपनेता होने के नाते पूरे अधिकार के साथ यह बात कह रही हूं। पंद्रहवीं लोकसभा का पहला बजट सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने के बाद आडवाणी की उपस्थिति में सुषमा ने संवाददाताओं से यह बात कही। आडवाणी ने भी सुषमा की बातों की पुष्टि करते हुए कहा, मैं जिस भी बात के लिए राजी हुआ, वह मेरी खुद की इच्छा रही। मेरा जो राजनीतिक जीवन रहा है और उसमें देश की ओर से मुझे जो प्रशंसा मिली है उसमें मैं ऐसा कोई कार्य नहीं करता, जो मुझे पसंद न हो। लोकसभा चुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद आडवाणी ने वरिष्ठ नेताओं से कहा था कि वह विपक्ष का नेता नहीं बनना चाहते हैं और यह काम किसी और को सौंपा जाए। लेकिन इस पद के लिए बीजेपी के भीतर कोई आम राय नहीं बनने और इसे लेकर दूसरी पीढ़ी के नेताओं में जबर्दस्त घमासान मचने के कारण आखिरकार पार्टी के आग्रह पर आडवाणी नेता प्रतिपक्ष का पद स्वीकारने के लिए राजी हो गए। पार्टी ने सक्रिय राजनीति में आडवाणी की भूमिका के बारे में अनिश्चितता को शिमला में 19 अगस्त से होने जा रही चिन्तन बैठक से पहले दूर किया है। इस चिन्तन बैठक में लोकसभा चुनाव में पार्टी की हुई हार के कारणों की समीक्षा की जानी है। इस बैठक में पार्टी के 25 वरिष्ठ नेताओं के शिरकत करने की संभावना है लेकिन अभी उनके नामों को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। लोकसभा चुनाव के बाद यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह और अरुण शौरी ने आडवाणी सहित पार्टी नेतृत्व पर आरोप लगाया कि हार के कारणों की समीक्षा करने की बजाय इसके जिम्मेदार लोगों को पुरस्कृत किया जा रहा है। आडवाणी ने जब लोकसभा में बीजेपी संसदीय दल का नेता बनने की सहमति दी, तो अटकलें लगाई गईं कि वह इस पद पर अस्थायी रूप से रहेंगे और पार्टी की दूसरी पीढ़ी में मचे घमासान के शांत होने के बाद वह इस पद से हट जाएंगे। अरुण जेटली और सुषमा स्वराज जैसे दूसरी पीढी के नेताओं को क्रमश: राज्यसभा में विपक्ष का नेता तथा लोकसभा में उपनेता बनाए जाने के बाद भी अटकलों का बाजार गर्म था कि आडवाणी अब पार्टी नेतृत्व में युवाओं को आगे करेंगे।
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