Tuesday, August 18, 2009

बीजेपी के सामने जलते सवाल

बीजेपी के सीनियर नेता शिमला की वादियों में बुधवार से तीन दिन तक
आत्मनिरीक्षण करेंगे। वे सोचेंगे कि अपने सहयोगी दलों के साथ पार्टी पिछले लोकसभा चुनावों में इतनी सीटें क्यों नहीं ला सकी कि लालकृष्ण आडवाणी देश के प्रधानमंत्री बन सके। राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों के बागी तेवरों और बीजेपी के सीनियर नेता जसवंत सिंह की पुस्तक में मुहम्मद अली जिन्ना और सरदार वल्लभ भाई पटेल पर की गई टिप्पणियों से उठ रहे बवंडर के माहौल में यह बैठक होगी। पार्टी आलाकमान ने वसुंधरा राजे से इस्तीफा मांगे जाने और जसवंत सिंह की जिन्ना और पटेल पर की गई टिप्पणियों से बन रहे माहौल को संभालने की पूरी कोशिश की है। वसुंधरा के मामले में आलाकमान ने कह दिया कि त्यागपत्र के मामले में कोई समयसीमा नहीं बांधी गई है और जसवंत सिंह की किताब में जिन्ना और पटेल की टिप्पणियों पर चिंतन बैठक की पूर्व संध्या पर पार्टी ने खुद को अलग कर लिया। हालांकि पार्टी की हार के बाद सवाल खड़े करने वाले सीनियर नेताओं में से यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी को चिंतन बैठक से दूर रखने में आलाकमान सफल रहे हैं लेकिन जसवंत सिंह उन 25 नेताओं में शामिल हैं जो इस बैठक में भाग ले रहे हैं। जसवंत सिंह ने पार्टी के मुख्य चुनाव प्रबंधक अरुण जेटली को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने पर अप्रसन्नता प्रकट करते हुए चुनावों में बीजेपी की हार के बाद प्रदर्शन और पुरस्कार में संबंध बैठाने का सवाल खड़ा किया था। हालांकि संकेत इस प्रकार के मिल रहे हैं कि पार्टी आलाकमान चिंतन बैठक के दौरान 'बीती ताहे बिसार के, आगे की सुध ले' की तर्ज पर आने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की चुनावी रणनीति को चर्चा का केंद्र बनाने की कोशिश करे। लेकिन जसवंत सिंह के रुख से लगता है कि वह पार्टी नेताओं के लिए कुछ असहज सवाल फिर से खड़े करने की कोशिश करें। बैठक में भाग लेने वाले नेताओं में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, संसद के दोनों सदनों के प्रतिपक्ष के नेता-सुषमा स्वराज और अरुण शौरी, चुनावों में खराब प्रदर्शन के कारणों का पता लगाने की जिम्मेदारी वहन करने वाले बाल आप्टे आदि शामिल हैं। दिल्ली से पार्टी के राष्ट्रीय सचिव विजय गोयल को ही बैठक में शामिल किया गया है। चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारणों का पता लगाने के लिए बाल आप्टे समिति का गठन किया गया था जिसने विभिन्न राज्यों की पार्टी की इकाइयों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार की है। उस रिपोर्ट पर विचार किया जा सकता है। हरियाणा और महाराष्ट्र में होने वाले चुनावों को ध्यान में रख कर भी आगे की रणनीति तैयार की जा सकती है। नई दिल्ली में सत्ता में आने के लिए पार्टी की चिंता देश के दक्षिणी राज्यों में मतदाता का समर्थन प्राप्त करना है। आडवाणी भी दक्षिण भारत में अपना आधार मजबूत करने पर जोर दे चुके हैं। उन्होंने स्वीकार किया है कि देश के दक्षिणी हिस्सों की 145 लोकसभा सीटों पर प्रतिनिधित्व के मामले में बीजेपी फिलहाल शून्य है। वैसे पार्टी के नेता चिंतन बैठक के शुरू होने से पहले ही शंका प्रकट कर रहे हैं कि इस बैठक से कुछ खास हासिल होने वाला नहीं है। 2004 के चुनावों की हार के बाद भी पार्टी सबक नहीं सीख सकी तो तीन दिन की बैठक में क्या हो सकता है। आम चुनावों में अभी पांच साल का समय शेष है और विधानसभा चुनावों में हार जीत के कारण राज्यवार ही हो सकते हैं। इसलिए भिन्न राज्यों में एक रणनीति काम करने वाली नहीं है। NBT

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