बीजेपी आलाकमान चुनावों में हार की खुले दिल से विश्लेषण की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। शिमला में होने वाली चिंतन बैठक में इस मुद्दे के बजाय पार्टी अपने भविष्य पर विचार करने की सोच रही है। आयोजकों की गंभीरता इसी से समझी जा सकती है कि चुनावी हार के कारणों को लेकर मुखर होने वाले कुछ प्रमुख नेताओं को बैठक में शामिल होने का मौका मिलने की संभावना नहीं है। पार्टी के एक बड़े नेता का कहना था कि सवाल खड़ा करने वाले नेताओं को भी चिंतन बैठक में बोलने का मौका मिलता तो यह बैठक अधिक सार्थक होती। पार्टी आगे के चुनावों की रणनीति जरूर बनाए लेकिन पिछले चुनावों में हार के कारणों की ओर संकेत करने वाले नेताओं को भी बुलाया जाना चाहिए। गौरतलब है कि चुनावों में हार और उसके बाद पाटीर् में उठे तूफान को शांत करने के लिए तीन दिन की चिंतन बैठक 19 अगस्त से शिमला में होगी। लेकिन इसमें पार्टी की हार को लेकर मुखर हुए यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी जैसे नेता मौजूद नहीं रहेंगे। सिन्हा ने हजारीबाग से कहा कि बैठक के लिए मुझे कोई न्योता नहीं मिला है। मैं उस श्रेणी में नहीं आता, जो बैठक में शामिल होने के लिए बनाई गई है। बैठक के उद्देश्य पर उन्होंने कहा कि पार्टी बहुत कठिन परिस्थिति में है क्योंकि मुस्लिम अल्पसंख्यक हों या क्रिश्चियन माइनॉरिटी, अल्पसंख्यकों का वोट बीजेपी को नहीं मिलता। 20 प्रतिशत अल्पसंख्यकों को छोड़कर 80 प्रतिशत मतदाताओं के वोटों के लिए बाकी दलों के साथ संघर्ष करना पड़ता है। बीजेपी पूरे देश में नहीं है। देश में कई ऐसे स्थान हैं, जहां बीजेपी शून्य की स्थिति में है। ऐसे में राष्ट्रीय मेनिफेस्टो के आधार पर राज्यों के अलग-अलग मुद्दों को छोड़कर चुनाव लड़ने से वोट नहीं लिए जा सकते। हर भूखंड और हर क्षेत्र के मुद्दों को लेकर चुनाव लड़े बगैर मतदाता के विश्वास तक नहीं पहुंचा जा सकता। शिमला बैठक में करीब 25 नेताओं के आने की संभावना है। इनमें बीजेपी संसदीय बोर्ड और कोर ग्रुप के सदस्य, बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और संसद के दोनों सदनों के विपक्ष के नेता और उप नेता शामिल होंगे। लालकृष्ण आडवाणी का मानना है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पहले ही चुनाव का विश्लेषण हो चुका है। अब आगे की बात सोची जा रही है। इससे साफ संकेत हैं कि बैठक में लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को अजेंडे में शामिल नहीं किया जाएगा। राजनीतिक पर्यवेक्षकों की निगाह अब यशवंत और शौरी जैसे मुखर होने वाले जसवंत सिंह, मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार जैसे नेताओं के रुख पर है। जसवंत पार्टी के लिए चुनावों के मुख्य प्रबंधक रहे अरुण जेटली को राज्यसभा में विपक्ष का नेता बनाने पर सवाल उठा चुके हैं। जोशी भी संकेतों में काफी कुछ कह चुके हैं। पार्टी चुनावों की हार के कारण पता लगाने के लिए राज्यों में अपने दल भेज चुकी है। पार्टी उपाध्यक्ष बाल आप्टे की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति भी बनाई गई थी। बाल आप्टे उस सबका उल्लेख करेंगे। ऐसा मौका आ सकता है, जब जसवंत और जोशी उसके विश्लेषण की चर्चा पर जोर डाल सकते
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