भाजपा से हाल में निष्कासित वरिष्ठ राजनीतिज्ञ जसवंत सिंह ने पार्टी को ‘असहिष्णु’ और ‘भय व अविश्वास से ग्रस्त’ बताया है। उन्होंने कहा है कि वे जिन्ना व देश के बंटवारे पर लिखी गई अपनी किताब पर रोक लगाने के गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
उन्होंने कहा, ‘मैं हर हालत में इस पाबंदी का विरोध करूंगा। पहले मेरी किताब पर रोक लगाना और फिर उसकी कॉपियां जलाना, ये कुछ बड़े सवाल हैं। मैं मानता हूं कि इस तरह की गतिविधियों का विरोध करना हर नागरिक का कर्तव्य है।’
ऐसी उम्मीद न थी : जसवंत ने कहा कि किताब की रिलीज पर हंगामे की आशंका उन्हें पहले से थी। लेकिन, उन्हें पार्टी से निकाले जाने की उम्मीद नहीं थी। वे बोले कि अटल बिहारी वाजपेयी के सक्रिय राजनीति से दूर होने के बाद भाजपा असहिष्णु हो गई है।
पहले भी जताया विरोध : उन्होंने बताया कि वे पहले भी कई बातों पर पार्टी के विचारों से असहमति जता चुके हैं। इनमें महाराष्ट्र में शिवसेना से हाथ मिलाना व लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा जैसे मुद्दे शामिल हैं। लेकिन, पहले कभी भी उन्हें अपनी बात रखने से रोका नहीं गया। सभी मामलों पर पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में खुलकर बातचीत हुई। जैसे ही उन्हें लगा कि मुद्दों पर उनके पास बहुमत नहीं है, उन्होंने पार्टी के फैसले को स्वीकारने में देरी नहीं की।
गुजरे दौर की बात : जसवंत के मुताबिक, यह उस गुजरे हुए दौर की बात है जब भाजपा में लोकतांत्रिक तरीके से काम हुआ करता था। अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आडवाणी भी उन दिनों उनके विरोध को बर्दाश्त कर लेते थे। जसवंत ने बताया कि वे संघ से ताल्लुक नहीं रखते और न ही कभी उसकी शाखाओं में उपस्थित रहे। मगर, कभी किसी ने उन्हें इसके लिए टोका नहीं।
दूसरी पंक्ति जिम्मेदार : उन्होंने बिना किसी की ओर इशारा किए संकेत दिए कि पार्टी में दूसरी पंक्ति के नेता ही उनकी वर्तमान हालत के लिए जिम्मेदार हैं। वे बोले, ‘दूसरी पंक्ति के नेताओं की असहनशीलता के चलते उन नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं, जिनके बिना लोकतांत्रिक ढांचा काम नहीं कर सकता।’
बिखराव की स्थिति : उन्होंने कहा कि नेतृत्व के भयग्रस्त होने से भाजपा में बिखराव की स्थिति है। नेता एक-दूसरे से डरते तो हैं ही, उन्हें पार्टी के नेताओं पर विश्वास भी नहीं है। पहले यह बात कांग्रेस के लिए कही जाती थी, लेकिन अब भाजपा ही इस तरह की समस्याओं की शिकार है। जसवंत ने कहा कि इस तरह की पार्टी को कोई कैसे आगे बढ़ा सकता है?
उन्होंने कहा, ‘मैं हर हालत में इस पाबंदी का विरोध करूंगा। पहले मेरी किताब पर रोक लगाना और फिर उसकी कॉपियां जलाना, ये कुछ बड़े सवाल हैं। मैं मानता हूं कि इस तरह की गतिविधियों का विरोध करना हर नागरिक का कर्तव्य है।’
ऐसी उम्मीद न थी : जसवंत ने कहा कि किताब की रिलीज पर हंगामे की आशंका उन्हें पहले से थी। लेकिन, उन्हें पार्टी से निकाले जाने की उम्मीद नहीं थी। वे बोले कि अटल बिहारी वाजपेयी के सक्रिय राजनीति से दूर होने के बाद भाजपा असहिष्णु हो गई है।
पहले भी जताया विरोध : उन्होंने बताया कि वे पहले भी कई बातों पर पार्टी के विचारों से असहमति जता चुके हैं। इनमें महाराष्ट्र में शिवसेना से हाथ मिलाना व लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा जैसे मुद्दे शामिल हैं। लेकिन, पहले कभी भी उन्हें अपनी बात रखने से रोका नहीं गया। सभी मामलों पर पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में खुलकर बातचीत हुई। जैसे ही उन्हें लगा कि मुद्दों पर उनके पास बहुमत नहीं है, उन्होंने पार्टी के फैसले को स्वीकारने में देरी नहीं की।
गुजरे दौर की बात : जसवंत के मुताबिक, यह उस गुजरे हुए दौर की बात है जब भाजपा में लोकतांत्रिक तरीके से काम हुआ करता था। अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आडवाणी भी उन दिनों उनके विरोध को बर्दाश्त कर लेते थे। जसवंत ने बताया कि वे संघ से ताल्लुक नहीं रखते और न ही कभी उसकी शाखाओं में उपस्थित रहे। मगर, कभी किसी ने उन्हें इसके लिए टोका नहीं।
दूसरी पंक्ति जिम्मेदार : उन्होंने बिना किसी की ओर इशारा किए संकेत दिए कि पार्टी में दूसरी पंक्ति के नेता ही उनकी वर्तमान हालत के लिए जिम्मेदार हैं। वे बोले, ‘दूसरी पंक्ति के नेताओं की असहनशीलता के चलते उन नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं, जिनके बिना लोकतांत्रिक ढांचा काम नहीं कर सकता।’
बिखराव की स्थिति : उन्होंने कहा कि नेतृत्व के भयग्रस्त होने से भाजपा में बिखराव की स्थिति है। नेता एक-दूसरे से डरते तो हैं ही, उन्हें पार्टी के नेताओं पर विश्वास भी नहीं है। पहले यह बात कांग्रेस के लिए कही जाती थी, लेकिन अब भाजपा ही इस तरह की समस्याओं की शिकार है। जसवंत ने कहा कि इस तरह की पार्टी को कोई कैसे आगे बढ़ा सकता है?
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