जिन्ना के जिन्न को जिंदा करने की सजा में बीजेपी से बेआबरू होकर निकाले जाने के अगले दिन जसवंत सिंह ने बीजेपी के आला नेताओं को याद दिलाया है कि वह सरदार पटेल ही थे, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर सबसे पहले प्रतिबंध लगाया था। जसवंत सिंह को उनकी किताब- 'जिन्ना : भारत, विभाजन, आजादी' में जिन्ना को विभाजन के दोष के लिए बरी करने और जवाहरलाल नेहरू के साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल पर उंगली उठाने के लिए बुधवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बर्खास्त कर दिया गया। आरएसएस द्वारा जसवंत सिंह के विचारों को खारिज किए जाने के बाद पार्टी ने खुद को उससे अलग कर लिया था। पार्टी से निष्कासित किए जाने के बाद भी जसवंत सिंह ने लोकसभा का सदस्य बने रहने की घोषणा की है और संसद की लोक लेखा समिति का अध्यक्ष बने रहने का फैसला भविष्य पर छोड़ दिया है। बीजेपी के संसदीय बोर्ड के सदस्य के नाते पाटीर् की चिंतन बैठक में भाग लेने शिमला गए और पार्टी से निष्कासित होने पर उस बैठक में भाग लिए बगैर वापस दिल्ली लौटने पर जसवंत ने यहां संवाददाताओं से कहा कि मुझे नहीं मालूम की बीजेपी किस आस्था की बात कर रही है, जबकि सरदार पटेल ही वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया। उन्होंने कहा कि मुझे मालूम नहीं कि मैंने मूल आस्था के किस अंश को छेड़ा है।
गौरतलब है कि बीजेपी महासचिव अरुण जेटली ने शिमला में कहा कि सिंह ने अपनी पुस्तक में जिन्ना और सरदार पटेल के बारे में जो कुछ कहा है, वह बीजेपी की विचारधारा और आस्था के एकदम विपरीत है और गंभीर अनुशासनहीनता है। जसवंत सिंह ने कहा कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मैंने पार्टी का कौन सा अनुशासन तोड़ा है और पार्टी की किस विचारधारा का उल्लंघन किया है। उनका कहना था कि आडवाणी के जिन्ना प्रकरण में पार्टी ने कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया था। वह केवल नेताओं का बयान था। उन्होंने कहा कि उन्होंने जिन्ना के तौर-तरीकों और लगातार बदलते रुख के बारे में लिखा है जिसका परिणाम देश का विभाजन हुआ था। इसके लिए जितना ब्रिटिश जिम्मेदार थे, उतना ही कांग्रेस के नेता भी जिम्मेदार रहे। उन्होंने याद दिलाया कि आडवाणी के जिन्ना प्रकरण के दौरान वह आडवाणी के साथ खड़े थे। यह सही नहीं है कि उन्होंने कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा कि सभी जानते हैं कि मेरे आरएसएस से संबंध नहीं हैं और मैं कभी आरएसएस का सदस्य नहीं रहा। गुजरात में बीजेपी सरकार द्वारा उनकी किताब पर प्रतिबंध लगाए जाने की आलोचना करते हुए जसवंत ने कहा कि यह किताब पर नहीं, बल्कि सोच पर प्रतिबंध है। सबको व्यक्तिगत रूप से और मिलकर इस बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने इससे असहमति जाहिर की कि उन्हें किताब लिखने से पहले सार्वजनिक जीवन से मुक्ति ले लेनी चाहिए थी। उनका कहना था कि जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, विंस्टन चर्चिल जैसे नेताओं ने सक्रिय राजनीति में रहते हुए ही लिखा। जसवंत ने बताया कि उन्होंने किताब लिखने के बारे में आडवाणी और राजनाथ सिंह को जानकारी दी थी तो उन्होंने कहा था कि वह विधानसभा और लोकसभा चुनावों के समाप्त होने तक इंतजार करें। उन्होंने स्पष्ट करने की कोशिश की कि सरदार पटेल के बारे में उन्होंने जो कुछ लिखा वह अंदाज से नहीं, बल्कि प्रकाशित तथ्यों के आधार पर लिखा है। संसद में बने रहने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह निर्दलीय सदस्य के तौर पर लोकसभा में बैठेंगे। वह किसी अन्य पार्टी में शामिल नहीं होंगे। लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उन्हें जो सीट आवंटित की जाएगी, उस सीट पर वह बैठेंगे। उन्होंने कहा कि बीजेपी के कोर ग्रुप को लिखे अपने पत्र को वह 22 अगस्त को सार्वजनिक करेंगे।
गौरतलब है कि बीजेपी महासचिव अरुण जेटली ने शिमला में कहा कि सिंह ने अपनी पुस्तक में जिन्ना और सरदार पटेल के बारे में जो कुछ कहा है, वह बीजेपी की विचारधारा और आस्था के एकदम विपरीत है और गंभीर अनुशासनहीनता है। जसवंत सिंह ने कहा कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मैंने पार्टी का कौन सा अनुशासन तोड़ा है और पार्टी की किस विचारधारा का उल्लंघन किया है। उनका कहना था कि आडवाणी के जिन्ना प्रकरण में पार्टी ने कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया था। वह केवल नेताओं का बयान था। उन्होंने कहा कि उन्होंने जिन्ना के तौर-तरीकों और लगातार बदलते रुख के बारे में लिखा है जिसका परिणाम देश का विभाजन हुआ था। इसके लिए जितना ब्रिटिश जिम्मेदार थे, उतना ही कांग्रेस के नेता भी जिम्मेदार रहे। उन्होंने याद दिलाया कि आडवाणी के जिन्ना प्रकरण के दौरान वह आडवाणी के साथ खड़े थे। यह सही नहीं है कि उन्होंने कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा कि सभी जानते हैं कि मेरे आरएसएस से संबंध नहीं हैं और मैं कभी आरएसएस का सदस्य नहीं रहा। गुजरात में बीजेपी सरकार द्वारा उनकी किताब पर प्रतिबंध लगाए जाने की आलोचना करते हुए जसवंत ने कहा कि यह किताब पर नहीं, बल्कि सोच पर प्रतिबंध है। सबको व्यक्तिगत रूप से और मिलकर इस बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने इससे असहमति जाहिर की कि उन्हें किताब लिखने से पहले सार्वजनिक जीवन से मुक्ति ले लेनी चाहिए थी। उनका कहना था कि जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, विंस्टन चर्चिल जैसे नेताओं ने सक्रिय राजनीति में रहते हुए ही लिखा। जसवंत ने बताया कि उन्होंने किताब लिखने के बारे में आडवाणी और राजनाथ सिंह को जानकारी दी थी तो उन्होंने कहा था कि वह विधानसभा और लोकसभा चुनावों के समाप्त होने तक इंतजार करें। उन्होंने स्पष्ट करने की कोशिश की कि सरदार पटेल के बारे में उन्होंने जो कुछ लिखा वह अंदाज से नहीं, बल्कि प्रकाशित तथ्यों के आधार पर लिखा है। संसद में बने रहने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह निर्दलीय सदस्य के तौर पर लोकसभा में बैठेंगे। वह किसी अन्य पार्टी में शामिल नहीं होंगे। लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उन्हें जो सीट आवंटित की जाएगी, उस सीट पर वह बैठेंगे। उन्होंने कहा कि बीजेपी के कोर ग्रुप को लिखे अपने पत्र को वह 22 अगस्त को सार्वजनिक करेंगे।
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