-'राहुल भैया से क्यों लड़ती, यूपी की महारानी है!' कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी द्वारा बुंदेलखंड से किए विकास के वादे को पूरा करने में उत्तर प्रदेश की बीएसपी और मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार के अड़ंगा डालने से इस सूखाग्रस्त इलाके में कांग्रेस में नई जान आ गई है। बुंदेलखंड में 37 प्रतिशत दलित हैं। यूपी में दलित आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा बुंदेलखंड में रहता है। यहां कांग्रेस के मजबूत होने का मतलब कांग्रेस का यूपी के दलितों में वापस अपनी जगह बनाना है। राहुल गुरुवार को यूपी कांग्रेस समन्वय समिति की बैठक में हिस्सा लेने लखनऊ जा रहे हैं। बैठक में राहुल द्वारा प्रस्तावित अंतर्राज्यीय बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण की मांग को आगे बढ़ाने पर भी चर्चा की संभावना है। 1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम बुंदेलखंड की रियासत झांसी से शुरू हुआ था। अंग्रेज इस बात को कभी नहीं भूले। उन्होंने बुंदेलखंड को विकास से हमेशा दूर रखा। अभी दो साल पहले जब देश ने 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं सालगिरह मनाई तो इस बात पर भी उठाया गया कि आजादी के आंदोलन के केंद्र रहे क्षेत्रों के विकास के लिए सरकारों को विशेष ध्यान देना चाहिए। मगर बुंदेलखंड के विकास का सवाल उठते ही जिस तरह उसका विरोध शुरू हुआ, उससे आक्रोशित केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री और झांसी के सांसद प्रदीप जैन आदित्य कहते हैं कि क्या हमें अपने इलाके के विकास का सवाल उठाने का भी हक नहीं है? जैन ने कहा कि जब उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारें बुंदेलखंड की पीड़ा की अनदेखी कर रही थीं, तब राहुल गांधी ने बुंदेलखंड के गांव-गांव जाकर वहां के लोगों के दुख-दर्द बांटे। बहन मायावती को पत्थर की मूर्तियों से ज्यादा प्रेम है, हाड़-मांस के इंसानों की दुख-तकलीफों से नहीं। इसी साल लोकसभा चुनाव से पहले यूपी और एमपी के सांसदों ने दलीय सीमाओं से ऊपर उठकर प्रधानमंत्री से मिलकर 25 हजार करोड़ रुपये के बुंदेलखंड पैकिज और राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की थी। लेकिन लोकसभा में यूपी से कांग्रेस की भारी जीत ने राजनीतिक दलों को चौकन्ना कर दिया। वे कांग्रेस के बुंदेलखंड विकास में राजनीति देखने लगे। बुंदेलखंड के कई दुर्भाग्य हैं। इनमें से सबसे बड़ा तो यह है कि वह अप्राकृतिक रूप से दो राज्यों में बंटा हुआ है। बुंदेलखंड के सात जिले - झांसी, चित्रकूट ,बांदा, हमीरपुर, महोबा, जालौन और ललितपुर यूपी में जबकि दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सागर और दमोह मध्य प्रदेश में आते हैं। यहां कोई बड़ा उद्योग-धंधा नहीं है। 7 साल से लगातार सूखा पड़ रहा है। छोटे और सीमांत किसानों के पास जोत का रकबा भी धीरे-धीरे कम होकर 1.32 हेक्टेयर ही रह गया है। जबकि 1960-61 में यह 2.69 हेक्टेयर था। पिछले साल जनवरी में वहां गए केंद्रीय अध्ययन दल ने पाया कि पथरीले बुंदेलखंड की कृषि भूमि की उपजाऊ क्षमता भी पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुकाबले केवल एक चौथाई है। NBT
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