अपनी नई किताब में जिन्ना की तारीफ करने के बाद से अलग-थलग पड गए वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवन्त सिंह को आखिरकार पार्टी ने बुधवार को निष्कासित कर दिया। अचानक निष्कासन की सूचना मिलने के बाद आंखों में आंसू लिए जसवन्त सिंह ने आश्चर्य जताया कि कभी वे पार्टी के लिए हनुमान हुआ करते थे, तो आज रावण कैसे हो गए। उन्होंने सफाई का मौका दिए बगैर एक किताब के आधार पर निकाले जाने और निजी रूप से फैसले के बारे में सूचना नहीं देने पर दु:ख जताया। लोकसभा चुनाव पर हार के कारणों पर चिन्तन के लिए शिमला में आज से शुरू तीन दिवसीय बैठक के दौरान पार्टी संसदीय बोर्ड ने सिंह के निष्कासन का फैसला किया। एक दिन पहले ही बयान देकर जसवन्त की पुस्तक 'जिन्ना-इण्डिया, पार्टीशन, इण्डिपेण्डेन्स' में व्यक्त विचारों से पार्टी को अलग बता चुके अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पत्रकारों को बताया कि संसदीय बोर्ड ने जसवन्त की पार्टी की प्राथमिक सदस्यता समाप्त करने का फैसला किया है।
आंखें भर आईनिष्कासन के बाद संवाददाता सम्मेलन में जसवन्त की आंखें भरी और गला रूंधा हुआ था। उन्होंने कहा कि 30 साल के जुडाव के दौरान पार्टी ने जो दायित्व सौंपा, उसे अपनी क्षमतानुसार निभाया है। सिंह ने कहा कि सेना से इस्तीफा देने के कारण उन्हें पेन्शन भी नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि उनका राजनीतिक जीवन समाप्त नहीं हुआ है और सांसद के रूप में सक्रिय बने रहेंगे, लेकिन वह निष्कासन को वापस लेने अथवा पुनर्विचार की अपील नहीं करेंगे। सिंह ने कहा कि केवल किताब लिखने पर कार्रवाई का यह चलन जारी रहा तो किसी राजनीतिक दल अथवा संगठन में पढना, लिखना, चिन्तन, सोच-विचार बन्द हो जाएगा। जसवन्त ने कहा कि पांच वर्षों के अनुसन्धान और शोध के बाद उन्होंने यह किताब लिखी है. इसलिए इस पर उन्हें बिल्कुल भी खेद नहीं है।
आडवाणी का जिन्ना प्रसंगजून 2005 में पाकिस्तान यात्रा के दौरान जिन्ना की तारीफ करने पर वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण को भी पार्टी के भीतर आलोचना का शिकार होना पडा था। संघ की नाराजगी के कारण 2005 के अन्त तक उन्हें भाजपा अध्यक्ष पद छोडना पडा और राजनाथ सिंह पार्टी प्रमुख बने।
बैठक में न आने को कहाराजनाथ सिंह ने बताया कि उन्होंने खुद फोन करके पूर्व केन्द्रीय मंत्री को बैठक में नहीं आने को कहा था और संसदीय दल की बैठक के बाद निष्कासन के फैसले की जानकारी भी दी। वे बैठक में भाग लेने के लिए मंगलवार को शिमला पहुंच गए थे, लेकिन बैठक से दूर रहे।
आंखें भर आईनिष्कासन के बाद संवाददाता सम्मेलन में जसवन्त की आंखें भरी और गला रूंधा हुआ था। उन्होंने कहा कि 30 साल के जुडाव के दौरान पार्टी ने जो दायित्व सौंपा, उसे अपनी क्षमतानुसार निभाया है। सिंह ने कहा कि सेना से इस्तीफा देने के कारण उन्हें पेन्शन भी नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि उनका राजनीतिक जीवन समाप्त नहीं हुआ है और सांसद के रूप में सक्रिय बने रहेंगे, लेकिन वह निष्कासन को वापस लेने अथवा पुनर्विचार की अपील नहीं करेंगे। सिंह ने कहा कि केवल किताब लिखने पर कार्रवाई का यह चलन जारी रहा तो किसी राजनीतिक दल अथवा संगठन में पढना, लिखना, चिन्तन, सोच-विचार बन्द हो जाएगा। जसवन्त ने कहा कि पांच वर्षों के अनुसन्धान और शोध के बाद उन्होंने यह किताब लिखी है. इसलिए इस पर उन्हें बिल्कुल भी खेद नहीं है।
आडवाणी का जिन्ना प्रसंगजून 2005 में पाकिस्तान यात्रा के दौरान जिन्ना की तारीफ करने पर वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण को भी पार्टी के भीतर आलोचना का शिकार होना पडा था। संघ की नाराजगी के कारण 2005 के अन्त तक उन्हें भाजपा अध्यक्ष पद छोडना पडा और राजनाथ सिंह पार्टी प्रमुख बने।
बैठक में न आने को कहाराजनाथ सिंह ने बताया कि उन्होंने खुद फोन करके पूर्व केन्द्रीय मंत्री को बैठक में नहीं आने को कहा था और संसदीय दल की बैठक के बाद निष्कासन के फैसले की जानकारी भी दी। वे बैठक में भाग लेने के लिए मंगलवार को शिमला पहुंच गए थे, लेकिन बैठक से दूर रहे।
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