वन मैन शो कहलाने वाली लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद में भी निराशाजनक चुनावी प्रदर्शन पर तकरार शुरू हो गई है। चौदहवीं लोकसभा में चौबीस सांसद जिताकर लाने वाली राजद को संप्रग सरकार में भी ऊंचा ओहदा मिला लेकिन 15वीं लोकसभा में तस्वीर बदल गई है। एमवाई समीकरण पर इतराने वाली राजद के लालू-रघुवंश समेत मात्र चार सांसद जीत सके।रेल मंत्री और ग्रामीण विकास मंत्री रहे उक्त दोनों नेता गहरे मतभेद के बावजूद वर्षो से पार्टी को मजबूत बनाने में जुटे रहे। अब जबकि बिहार से राजद का लगभग सफाया हो गया है, तब रघुवंश खुलकर सामने आ गए। उन्होंने सपा और लोजपा के साथ ऎन चुनाव से पहले चौथे मोर्चे के गठन के लालू के फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे बडी भूल करार दिया।इतना ही नहीं, नई सरकार का भी हिस्सा बनने की लालू की इच्छा को खारिज करते हुए सुझाव दे डाला कि जब कांग्रेस सत्ता में राजद की भागीदारी नहीं चाहती तो राजद को भी बाहर रहना चाहिए। कांग्रेस से नाता तोड मुलायम और पासवान के साथ चौथे मोर्चे का गठन कर पार्टी पहले ही खुद को कमजोर बना चुकी है। सत्ता पाने के लिए झुकने का मतलब होगा राजद को भारी नुकसान पहुंचाने वाली एक और गलती। उनका मानना है कि पार्टी सत्ता से बाहर रहे।इस बीच राजद के अंदर लालू की पत्नी और बिहार में नेता प्रतिपक्ष राबडी देवी के रवैये को लेकर भी असंतोष पनपने लगा है। पार्टी नेताओं का एक धडा चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री व जद (यू) नेता नीतीश कुमार पर कसी गई राबडी की अभद्र टिप्पणियों से खासा नाराज है। उसका मानना है कि पिछले साढे तीन साल से राबडी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर विराजमान हैं लेकिन उन्होंने ऎसा कुछ नहीं किया जिससे पार्टी का दबदबा कायम होता।बतौर नेता प्रतिपक्ष उनकी भूमिका जरा भी असरदार नहीं रही। इसके बाद जब लोकसभा चुनाव का मौका आया तो उन्होंने वाणी की शालीनता भी धो दी। जिस तरह भरी सभा में नीतीश और राजीव प्रताप लल्लन पर व्यक्तिगत आरोप मढे उससे राजद की छवि को भारी धक्का लगा जबकि जनता की सहानुभूति नीतीश के साथ जुड गई। अब भी समय है कि पार्टी सुप्रीमो हार के कारणों की समीक्षा करें और उन्हें दूर करने के गंभीर प्रयास किए जाएं। वरना लगभग दो साल बाद होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव में और दुर्दशा होगी।
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