कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और नेहरू-गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान रहे अर्जुन सिंह को हाल ही में गठित केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नही करने के बाद ऐसी आशंका जताई जा रही है कि कहीं उनका राजनीतिक करिअर खत्म तो नहीं हो गया। विश्लेषकों की मानें तो इसमें कोई दो राय नही है कि उनके राजनैतिक कार्यकाल का सबसे अच्छा समय 1980 से लेकर 1985 तक रहा जब वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, लेकिन चुरहट कांड के चलते उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा था। अर्जुन सिंह की गिनती हमेशा प्रदेश के सफल मुख्यमंत्रियों में की जाएगी। जब वे इस पद पर थे तो 1984 के लोकसभा चुनावों में अविभाजित मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने प्रदेश की 40 में से 40 सीटें जीत ली थी। हालांकि, यह चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के तुरन्त बाद हुए थे, लेकिन फिर भी इनमें सिंह की भूमिका को कम करके आंका नही जा सकता। अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के ऐसे अकेले मुख्यमंत्री है जो एक बार तो इस पद पर केवल एक ही दिन के लिए रहे थे। हुआ यूं कि 1985 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ तो दिलाई गई लेकिन अगले ही दिन उन्हें पंजाब का राज्यपाल बनाकर भेज दिया गया। पंजाब के राज्यपाल के रुप में भी उनके कामकाज की सराहना की गई। कहा जाता है कि राजीव-लोंगोवाल समझौता करवाने में उनकी अहम भूमिका थी। राजीव गांधी की हत्या के बाद पी.वी. नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने और उनसे अर्जुन सिंह की कभी नही बनी। उन्हें कांग्रेस से बाहर होना पड़ा। उन्होंने एन.डी. तिवारी की अध्यक्षता में तिवारी कांग्रेस का गठन किया। तिवारी कांग्रेस ज्यादा सफल नहीं हो सकी और उसके टिकट पर अर्जुन सिंह खुद 1996 में लोकसभा का चुनाव मध्यप्रदेश में सतना से हार गए। इसके बाद सिंह कांग्रेस में वापस लौट आए और 1998 का लोकसभा चुनाव उन्होंने होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र से लड़ा। लेकिन इस बार भी वह हार गए। सन 2000 में अर्जुन सिंह राज्यसभा के लिए मध्य प्रदेश से चुने गए और जब 2004 में यूपीए सरकार का गठन हुआ तो वे उसमें मानव संसाधन विकास मंत्री बनाए गए। लेकिन यह वर्ष सिंह के लिए परेशानियों और तकलीफों से घिरा रहा। उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान शायद उस वक्त हुआ जब उनकी जीवनी पर लिखी गई एक पुस्तक में उनकी पत्नी के हवाले से कथित तौर पर कहा गया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें देश का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री नहीं बनवाकर गलती की। वर्तमान लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने उनके पुत्र अजय सिंह और उनकी बेटी वीणा सिंह को टिकट नहीं दिया। वीणा ने सीधी से निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ा और हार गईं । जब वे मानव संसाधन विकास मंत्री थे तो उनके प्रयासों से ही इंदौर एक ऐसा शहर बना जहां पर आई.आई.टी. और आई.आई.एम. दोनों है। उनके प्रयासों से मध्य प्रदेश में कई बड़े संस्थान खुले और केंद्रीय विद्यालयों की संख्या भी बढ़ी।
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