Friday, May 22, 2009

सीपी को मंत्री बनाने में गहलोत की महत्वपूर्ण भूमिका रही

राजसमन्द। भीलवाडा से सांसद सीपी जोशी को मनमोहन सिंह सरकार में केबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किए जाने से यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस आलाकमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनके द्वारा पार्टी में लाई गई सक्रीयता एवं विधानसभा, लोकसभा चुनावाें में मिली सफलता से प्रसन्न हैं और इसी प्रसन्नता के चलते उन्हें केन्द्रीय मंत्री का पद पुरस्कार के रूप में दिया है। किसी भी राय के सांसद को मंत्री बनाने से पूर्व उस राय के मुख्यमंत्री की स्वीकृति होती ही है लिहाजा जोशी को केबिनेट मंत्री बनाने में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं डॉ सीपी जोशी दोनो का राजनीतिक जीवन 1980 में शुरू हुआ। गहलोत आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनावाें में जोधपुर से लोकसभा सदस्य चुने गए, जबकि सीपी जोशी विधानसभा चुनाव में नाथद्वारा से विधायक बनें। इस तरह गहलोत इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में समय रहते हुए केन्द्रीय राजनीति में सक्रीय रहे तो जोशी प्रदेश की राजनीति में। अशोक गेहलोत 84 में दूसरी बार सांसद बने और रायमंत्री भी सीपी जोशी मार्च 85 में दुबारा विधायक बने। इस तरह गहलोत उनसे हमेशा आगे रहे। इस दोरान अशोक गहलोत प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। सांसद रहते हुए कुछ महीने प्रदेश के गृहमंत्री भी रहे। इस दशक में अशोक गहलोत व सीपी जोशी एक दूसरे के काफी नजदीक आ गए और गहरे दोस्त बन गए। सीपी हमेशा से गहलोत समर्थक रहे। सितम्बर 07 में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रहते गहलोत ने डॉ सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने में खास भूमिका निभाई। नवल किशोर शर्मा व अन्य नेताओं ने भी उनकी लॉबींग की। विधानसभा चुनावाें में टिकट बंटवारे के समय एक रंणनीति के तहत उन्होने अपनी अलग अलग नीतियां बनाई। चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए भी इसी तरह नाम उछाले। एक वोट से चुनाव हारने के बाद में सीपी जोशी ने जब यह व्यक्तव्य दिया कि मुख्यमंत्री बनने के लिए विधायक होना जरूरी नहीं है, तो सभी यही समझे कि उन्होने स्वयं की दावेदारी रखते हुए गहलोत के समक्ष ताल ठोक दी है। जबकि यह व्यक्तव्य जाट नेता परसराम मदेरणा व शिशराम ओला को खुश करने वाला था। इससे अलग अलग दावेदारी से जाट विधायक दो खेमे में बंट गए। सीपी जोशी चौथे दावेदार दिखे तो शिशराम ओला को रोकने मदेरणा ने उन्हें समर्थन दे दिया। जबकि वास्तव में कांग्रेस आलाकमान चुनाव हार जाने के कारण उनके लिए तैयार नहीं था। इस बीच जोशी ने अपने मेवाड के समर्थक विधायकाें को गहलोत के साथ भेज दिया। सीपी व गहलोत की यह लडाई जाट नेता को मुख्यमंत्री पद के लिए रोकने के लिए ही थी। सीपी के हारने से गहलोत भी काफी व्यथित हुए। यदि वे उनके विरोधी होते तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से ही इस्तीफा दिला देते। किन्तु दोनो एक दूसरे के सहयोगीं जोडी के रूप मे सक्रीय हो गए। नाथद्वारा के एक समारोह में मुख्यमंत्री गहलोत ने घोषणा की थी कि सीपी जोशी को आगे पीछे विधायक या सांसद बनना ही है। लोकसभा चुनाव के दौरान दोनो ने सत्ता व संगठन में तालमेल रखते हुए सभी क्षेत्राें में प्रचार के लिए गए। भीलवाडा में सीपी जोशी के नामांकन भरने से पूर्व ही मुख्यमंत्री गहलोत ने दो तीन जगह सभाए ली और रोड शो किए। अशोक गहलोत ने पहली बार सांसद बने सीपी जोशी को राजस्थान से अकेले मंत्री के रूप में शपथ दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जबकि उनसे कई वरिष्ठ सांसद मंत्री पद के दावेदार थे। उनका अकेले शपथ लेना यह साबित करता है कि अशोक गहलोत उन्हें कितना आगे देखना चाहते हैं।

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