Tuesday, May 19, 2009

बदलाव की इच्छा से ढह गईं जातिगत दीवारें

यूपी में लोकसभा चुनाव में जनता की बदलाव की इच्छा इतनी मजबूत थी कि जातीय दीवारें भी ढह गईं। इसी के चलते कांग्रेस के कई प्रत्याशी जीत पाए। इसी से साफ होता है कि सपा और बसपा के कुशासन से लोग कितने तंग आ चुके थे। कांग्रेस ने इसी बदलाव के जरिये पूर्वांचल में आधा दर्जन सीटें हासिल की। प्रदेश में ब्राह्मणों ने क्षत्रियों को और क्षत्रियों ने ब्राह्मणों को वोट दिए। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदम्बिका पाल इसी कारण डुमरियागंज सीट से चुनाव जीत पाए। इस सीट पर पाल को वष्ाü 2004 के चुनाव में करीब डेढ लाख वोट मिले थे। इस बार उन्हें 2 लाख से ज्यादा वोट मिले। इसी सीट पर उनके खिलाफ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी माता प्रसाद पाण्डेय थे। पाण्डेय, पाल के मुकाबले तीसरे नम्बर पर रहे और ब्राह्मण बहुल क्षेत्र होने के बावजूद उन्हें 60 हजार वोट मिले। इसी तरह महराजगंज सीट से हष्ाüवर्घन सिंह को पिछले चुनाव में एक लाख 61 हजार वोट मिले थे और वे तीसरे नम्बर पर रहे थे। इस बार उन्हें 3 लाख से ज्यादा वोट मिले। उन्होंने बसपा के गणेश शंकर पाण्डेय को हराया। पाण्डेय को 1 लाख 80 हजार वोट मिले। कुशीनगर में कांग्रेस के आरपीएन सिंह को 2 लाख से ज्यादा वोट मिले। इनके मुकाबले बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य और भाजपा के विनय दुबे थे। दुबे तीसरे नम्बर पर रहे।श्रावस्ती में कांग्रेस के विनय कुमार पाण्डेय को 2 लाख से ज्यादा वोट मिले। वहीं, भाजपा के सत्यदेव सिंह को केवल 48 हजार वोट मिले। श्रावस्ती क्षेत्र में क्षत्रिय मतदाताओं की संख्या लाखों में हैं, लेकिन सत्यदेव सिंह उनका समर्थन हासिल नहीं कर सके। प्रतापगढ में कांग्रेस की राजकुमारी रत्ना सिंह चुनाव जीतीं और भाजपा के लक्ष्मी नारायण पाण्डेय तीसरे नम्बर पर रहें। उन्हें केवल 45 हजार वोट मिले। सुल्तानपुर में संजय सिंह को समाजवादी पार्टी के अशोक पाण्डेय के मुकाबले सफलता हासिल हुई। पाण्डेय एक लाख वोटों में सिमट गए जबकि संजय सिंह को 3 लाख से अघिक वोट मिले। संजय सिंह को ब्राह्मण मतदाताओं ने खुलकर समर्थन किया। पूर्वांचल ही नहीं प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी यह रूख देखने को मिला। उन्नाव और फैजाबाद में खत्री वोट सैकडों में भी नहीं हैं फिर भी अनु टण्डन और निर्मल खत्री इन सीटों से रिकार्ड वोटों से जीते। झांसी में कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप जैन की बिरादरी के वोट गिनती के हैं, लेकिन वे चुनाव जीत गए।

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