Sunday, May 17, 2009

वामपंथी इधर के रहे न उधर के

चुनाव नतीजे से जितना सकते में विपक्ष है उससे कहीं ज्यादा वामपंथी हिले हुए हैं। राष्ट्रीय फलक से गायब होने के साथ अब उनके सामने भविष्य का संकट खडा हो गया है। इन परिणामों ने उन्हें न इधर का रखा न उधर का। साढे चार साल केन्द्रीय सत्ता का साथ देकर वह खुद को पश्चिम बंगाल के बाहर भी देखने लगे थे, परन्तु लोकसभा चुनाव की कसौटी ने स्पष्ट कर दिया कि बाहर तो उनकी जडे नहीं जम पाई अलबत्ता बंगाल की राजनीतिक जमीन भी बंजर होने लगी है।कामरेड बंगाल में ताकत कम होने का अनुमान लगा रहे थे, लेकिन इतने कमजोर हो जाएंगे इसका अंदाजा उन्हें नहीं था। कम्युनिस्ट रणनीतिकार बंगाल में मिली शिकस्त को ममता बनर्जी-कांग्रेस गठजोड द्वारा पेश किए गए उनके विकास विरोधी चेहरे के असर के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि नंदीग्राम और सिंगुर मामले पर जिस तरह का माहौल बनाया गया था उसका वह मजबूत काट तैयार नहीं कर पाए। हार की एक वजह उन्हें मुस्लिम मतदाताओं का पाला बदलना भी लग रहा है। इसके पहले तक बंगाली और बाहर से आकर बसा मुस्लिम समाज वाम के साथ खडा था। परन्तु स“ार कमेटी की रिर्पोट में बंगाल के मुसलमानों की बदहारी का खुलासा और रिजवानुर हत्याकांड में राज्य सरकार के रूख से उपजे असंतोष को वामपंथी भांप नहीं पाए। लोकसभा चुनाव परिणाम ने वामपंथी कुनबे को सांसत में डाल दिया है। अब उसे भविष्य का डर सताने लगा है। कामरेडों को लग रहा है कि यदि समय रहने स्थिति नहीं संभाली गई तो आने वाले विधानसभा चुनाव में यह असर हो सकता है। दरअसल 2011 में बंगाल में विधानसभा चुनाव होना है इसलिए वाम खेमा देश की चिंता छोड घर की चिंता में जुट गया है। चुनाव परिणाम के बाद सोमवार को माकपा पोलित ब्यूरो की बैठक में उन्हें केन्द्र सरकार के गठन में अपनी भूमिका की रणनीति तय करना था परन्तु उनके सारे किए कराए पर पानी फिर गया।वामपंथी यह मानकर चल रहे थे कि केन्द्र में उनकी मदद के बगैर सरकार नहीं बनेगी। उनकी मंशा पिछले चार साल की तरह सरकार को अपनी अंगुली में नचाते हुए देश में वामपंथी ताकत को मजबूत करने के साथ कांग्रेस विरोधी शक्तियों को एकजुट करने की थी, परन्तु बाजी एकदम से पलट गई। जिस तरह से बंगाल उनके हाथ से खिसका है उससे वह हिल गए हैं। चुनाव परिणाम ने कम्युनिस्टों को ऎसी जगह पर लाकर खडा कर दिया है जहां से उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा। तीस साल से बंगाल की सत्ता पर काबिज वामपंथियों के लिए यह परिणाम उनके खिसकते जनाधार का संकेत माना जा रहा है। बंगाल में ममता बनर्जी की बढी स्वीकारोत्ति उसमें कांग्रेस से मजबूत होता साथ वामदलों के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। इस रिजल्ट ने बंगाल में निष्कंटक राज्य कर रही चारों वामपंथी पार्टियों की सांस सांसत में डाल दी है। इससे उबरने को लिए क्या रास्ता मिलता है यह देखना होगा।

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