तृणमूल नेता ममता बनर्जी ने दिल्ली पहुंचते ही घटक दलों में बडा दल होने के नाते अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। ममता जहां मंत्रिमंडल में अपने हिसाब से सीटें और मंत्रालय मांग रही है वहीं उसने संप्रग की पहली बैठक में कांग्रेस की इच्छा के विरूद्ध न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने की मांग कर डाली। हालांकि इस मामले में बैठक में कोई फैसला नहीं किया गया, लेकिन बाहर आकर उन्होंने अपनी इच्छा व्यक्त कर ही दी।ममता बुधवार को दिन भर यही संदेश देने की कोशिश में जुटी रही कि वह पश्चिम बंगाल के हितों का पूरा ध्यान रख रही हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से अलग मिल उन्होंने मंत्रालय संबंधी अपनी मांगें रख दी थी। साथ ही पिछली सरकार की तरह ही मिलाजुला कार्यक्रम बनाने पर जोर दिया। दरअसल असल झंझट मंत्रालयों को लेकर है। एक तो ममता द्रमुक के बराबर ही 8 मंत्रालय चाहती है। इसके साथ ही विभागों को लेकर भी पेंच फंस गया है।ममता रेल, ग्रामीण विकास व सडक एवं परिवहन मंत्रालय चाहती हैं। संयोग से द्रमुक भी रेल व सडक एवं परिवहन मंत्रालय चाहता है। इस मुद्दे को लेकर ममता ने प्रणव मुखर्जी व अहमद पटेल के साथ बैठकें भी की लेकिन कोई हल नहीं निकला। कांग्रेस के सामने अब सबसे बडी समस्या यही है कि किसे खुश करे और किसे नाराज। दोनों संप्रग दलों के नेताओं के साथ हुई बैठक में बुधवार को कोई हल नहीं निकल पाया। करूणानिधि जहां मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं वहीं ममता भी राजी नहीं हो रही। ममता 8 से सात मंत्रालय तक तो सहमत हो गई लेकिन 6 के लिए तैयार नहीं हैं। इसके साथ विभागों को लेकर भी तैयार नहीं हैं। समझा जा रहा है कि यह मान मनोव्वल का दौर 22 मई तक ही सुलझ पाएगा। ममता विधानसभा चुनाव के मद्देनजर रेल व ग्रामीण मंत्रालय दोनों को ही महत्वपूर्ण मान रही है।
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