बहुजन समाज पार्टी का दलित और पिछडे का फार्मूला भी फायदेमंद होना मुश्किल है। आरक्षण के मुद्दे पर दलित और पिछडा वर्ग आमने-सामने खडा है। मुख्यमंत्री मायावती ने ही वर्ष 2007 में पूर्व बहुमत से प्रदेश की सत्ता हासिल करने के बाद मुलायम सरकार द्वारा मछुआरा वर्ग की 16 अति पिछडी जातियों को अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करने के लिए जारी की गई अघिसूचना रद्द कर दी थी। इससे पहले जब बहुजन समाज पार्टी सत्ता में नहीं थी तब इस अघिसूचना के खिलाफ उच्च न्यायालय से स्थगन लिया गया था। इसके अलावा भी सुविधाओं के मुद्दे पर पिछडा और दलित वर्ग एक-दूसरे के आमने-सामने बना रहा है। हाल के लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता न मिलने पर अपनी समीक्षा में मुख्यमंत्री एवं बसपा नेता मायावती ने यह स्वीकार कर लिया है कि सर्वजन की नीति सफल नहीं रही है और पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को मिली सफलता के पीछे मुलायम सरकार के प्रति उपजा जनाक्रोश था। चूंकि यह आक्रोश समाप्त हो गया तो बसपा को लोकसभा चुनाव में पिछले विधानसभा चुनाव की तरह सफलता नहीं मिल पाई। भविष्य की राजनीति के लिए मायावती ने दलित और पिछडा वर्ग में आधार बनाने पर जोर दिया। यदि मायावती ने पिछडा वर्ग में पैठ बनाने का काम तेज किया तो सपा और बसपा के बीच धमासान भी तेज होगा। इसका कारण यह है कि समाजवादी पार्टी और इसके नेता मुलायम सिंह यादव पिछडा और मुस्लिम गठजोड की राजनीति करते रहे हैं। इधर, भाजपा छोडने वाले नेता कल्याण सिंह से दोस्ती के चलते मुस्लिम सपा और मुलायम से पलायन कर गया है। ऎसे में सपा का दारोमदार पिछडा वर्ग पर ही है। प्रदेश में दलित वर्ग करीब 22 प्रतिशत और पिछडा वर्ग करीब 52 फीसदी है।मुलायम सिंह ने मायावती के सर्वजन के फार्मूले के मुकाबले अपने पिछडा वर्ग को ही एकजुट करने का फैसला किया था और इसीलिए उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक की परवाह न करते हुए कल्याण सिंह से दोस्ती कर ली। इस दोस्ती का बडा खामियाजा मुलायम सिंह को भुगतना पडा है और उनकी लोकसभा सीटों की संख्या इस चुनाव में घट गईं। पिछडा वर्ग में बसपा को सफलता मिलना भी संदिग्ध है। उधर, कांग्रेस अपना खोया हुआ जनाधार फिर से बनाने में जुटने की तैयारी में है। मुस्लिम समर्थन खुलकर मिलने से कांग्रेस नेता बाग-बाग हैं। इस दृष्टि बसपा-सपा-कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय शीतयुद्ध शुरू होने के आसार है। तीन साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों पर इन तीन दलों की गम्भीर नजर हैं। भारतीय जनता पार्टी का मतदाता वर्ग इन तीनों दलों से भिन्न है, लेकिन उसकी तरफ से भी इन वर्गों में जनाधार की तलाश चलती रहती है।
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