Monday, March 9, 2009

गिरधारीलाल में जनता के प्रति लगाव व प्रतिबद्धता

जिसका कोई न पूछे हाल, उसके साथी थे गिरधारीलाल। यह कथन जनता ने सांसद गिरधारी लाल भार्गव के लिए बनाया हुआ था। इसमें कोई शक नहीं है कि भार्गव वाकई इसी तरह के इंसान थे। संसद में कामकाज निपटाने के बाद मौका मिलने पर बीकानेर हाउस पहुंचते और वहां से शाम की बस पकड कर जयुपर पहंुचना उनका लक्ष्य होता। जयपुर जाने की असल वजह यही होती कि उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र की जनता के सुख- दुख में शामिल जो होना होता था। उसमें शामिल होकर फिर वापस दिल्ली लौट आते और अगले दिन में संसद में नजर आते। यह प्रक्रिया उन्होंने अभी तक जारी रखी हुई थी। लगता ही नहीं था कि वे 72 के साल के बूढे हैं या जवान। यह कहना है उनके सबसे बडे जोडीदार सांसद रासासिंह रावत का। यह दोनों ऎसे सांसद थे जो कि दिल्ली में रहते हुए संसद की कार्यवाही के दौरान लगातार सदन में ही दिखाई पडते। सदन की कार्यवाही पांच बजे तक चले या रात 11 बजे तक दोनों सांसद सदन में दिखाई पडते। दोनों साथ ही मुद्दे उठाने का प्रयास करते। रावत कहते हैं कि उनकी जोडी में कोटा के दाउदयाल जोशी भी होते थे, जिनका पहले निधन हो गया। तीनों एक साथ ही राजस्थान के मुद्दे उठाते थे। भार्गव के निधन की खबर से आहत रावत कहते हैं कि उनके जाने से उन्हें व्यक्तिगत रूप से बडी हानी हुई है। दोनों एक-दूसरे की मदद करते थे। भार्गव के बारे में जितना कहा जाए कम है। जनता के प्रति उनका लगाव व प्रतिबद्धता उनके काम से ही दिखाई देती थी।मौका मिलने पर वे सदन की कार्यवाही समाप्त होते ही बीकानेर हाउस बस अडडे की तरफ भागते और जयुपर रवाना हो जाते। जयपुर जाने का उनका एक ही मकसद होता दुख -सुख में शामिल होने का। उन्हें केवल पता भर चलना चाहिए वे तुरंत उस परिवार के बीच में पहुंच जाते। शामिल होने के बाद अगले दिन संसद में दिखाई देते। ऎसा लगता कि 72 सवाल के बूढे नहीं जवान हैं। नगर निगम से लेकर संसद की राजनीति करने वाले भार्गव ने कभी अहंकार नहीं किया। इन दिनों में वे अपने टिकट को लेकर चिंतित थे लेकिन अब टिकट मिलने के बाद पूरे जोश में दिखाई दे रहे थे। विश्वास ही नहीं हो रहा है कि भार्गव अब हमारे बीच में नहीं हैं।

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