Friday, March 6, 2009

दिग्गजों का गढ विदिशा

धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत समेटे विदिशा जिला राजनीतिक क्षेत्र में भी दिग्गजों की रणभूमि रहा है। यहां से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मीडिया हस्ती रामनाथ गोयनका अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। अब एक बार फिर भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज को प्रत्याशी बनाकर विदिशा को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है। इधर, राज्य स्तर पर विदिशा का दबदबा पहले से ही कायम है। इस क्षेत्र से लगातार 5 बार प्रतिनिघित्व करने वाले शिवराजसिंह चौहान जहां मुख्यमंत्री की कमान संभाले हुए हैं, वहीं सांसद रहे राघवजी आज वित्त व्यवस्था को संभाल रहे हैं। भाजपा का गढ कहलाने वाले विदिशा संसदीय क्षेत्र में सुषमा स्वराज को मैदान में उतारे जाने से एक बार फिर कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ गई हैं।पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 10 वीं लोकसभा में विदिशा से जीत चुके हैं, लेकिन उन्होंने यह सीट छोड दी थी। साथ ही पूर्व में विदिशा का कुछ हिस्सा विजयाराजे सिंघिया के संसदीय क्षेत्र में आने के कारण वे भी इस क्षेत्र का प्रतिनिघित्व कर चुकी हैं। इसके अलावा मुंबई के ख्यातिप्राप्त वैद्य पं. शिव शर्मा, पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के पुत्र आशुतोष शर्मा, सागर के बीडी व्यवसायी मणिभाई पटेल सहित अन्य दिग्गज भी यहां अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। पिछले लोकसभा उपचुनाव में विदिशा सीट से मेनका गांधी के पुत्र वरूण गांधी का नामभी काफी चर्चा में रहा था। हालांकि टिकिट उनकी बजाय रामपालसिंह राजपूत को मिली।वर्ष 1991 में हुए 10 वीं लोकसभा के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी विदिशा और लखनऊ सीट पर एक साथ लडे थे। दोनों ही सीटों से जीतने के कारण वाजपेयी को लखनऊ भाया था और उन्होंने विदिशा सीट छोड दी थी। जिसके बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में शिवराजसिंह चौहान पहली बार सांसद बने थे। संसद के आंकडे बताते हैं कि विदिशा संसदीय क्षेत्र से अब तक लोक सभा में 6 लोगों ने बाकायदा शपथ लेकर प्रतिनिघित्व किया है। जिनमें पं. शिव शर्मा (4), रामनाथ गोयनका (5), राघवजी भाई (6 और 9), प्रतापभानू शर्मा (7 और 8), शिवराजसिंह चौहान (10 उप चुनाव, 11, 12, 13, 14) तथा रामपालसिंह राजपूत (14-उपचुनाव) शामिल हैं। भाजपा द्वारा प्रत्याशी घोषित करने के बाद अब लोगों की निगाहें कांग्रेस पर टिक गई हैं। अब तक कांग्रेस की ओर से स्थानीय स्तर के नेताओं के नाम चर्चा में थे और यही नाम पिछले दिनों हुई रायशुमारी में भी उठे थे। अब लोगों को इस बात का इंतजार है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वराज के मुकाबले कांग्रेस किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता को ही प्रत्याशी बनाएगी या फिर स्थानीय स्तर के नेता पर ही दांव खेला जाएगा।किसी स्थानीय नेता को प्रत्याशी बनाने की स्थिति में कांग्रेस स्थानीयता के मुद्दे को जमकर भुनाने की कोशिश करेगी। पूर्व के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने वाजपेयी का उदाहरण देते हुए इस मुद्दे को उछाला था। यदि कांग्रेस भी किसी बाहरी नेता को मैदान में उतारती है तो फिर यह मुद्दा गौण हो जाएगा।

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