एक तरफ जय हो की कांग्रेसी ललकार से आसमान गूंजने लगा है वहीं दूसरी ओर, भाजपा के माझी ही पार्टी की नाव में छेद कर चुनावी वैतरणी में उसे डुबोने का बंदोबस्त कर रहे हैं। खुद को पार्टी विद डिफरेंस कहने वाली भाजपा के लिए अंदरूनी खींचतान या घमासान कोई नई बात नहीं लेकिन शुक्रवार को सारी हदें पार कर दी गई। प्रमोद महाजन के करीबी सुधांशु मित्तल को पूर्वोत्तर का सह प्रभारी बनाए जाने से पार्टी के रणनीतिकार और मुख्य चुनाव प्रबंधक अरूण जेटली ऎसा रूठे कि केंद्रीय चुनाव समिति जैसी महत्वपूर्ण बैठक का बायकाट कर बैठे। हालांकि, संघ की ओर से सह-सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने ढांपने-तोपने की बहुत कोशिश की लेकिन दोनों ओर खिंची तलवारों को वापस म्यान में न डलवा सके। चुनाव प्रबंधन की कमान खुद के हाथों फिसल जाने से क्षुब्ध वेंकैया नायडू और पहले से खिन्न सुषमा स्वराज ने भी जेटली के खिलाफ मोर्चा खोल चुनावी माहौल में दबाव की राजनीति पर कडी आपत्ति दर्ज कराई। प्रमोद महाजन के करीबी रहे सुधांशु मित्तल जेटली की आंखों में हमेशा से खटकते रहे हैं। उन्हें इस बात पर सख्त ऎतराज है कि डीलर टाइप के लोगों पर इतना भरोसा क्यों। अरूण जेटली आएंगे या नहीं, इस सवाल के साथ दिन बीतता गया और शाम तक दो चरणों में चली सीईसी की बैठक में विभिन्न राज्यों की प्रत्याशी सूची पर मुहर लगती रही। जेटली अपनी बात के पक्के निकले और मुख्यालय नहीं पहुंचे। अलबत्ता दिन के भोजन पर आडवाणी के आवास जरूर गए जहां जद (यू) अध्यक्ष शरद यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ सीटों के तालमेल पर अंतिम चर्चा होनी थी।
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