Monday, March 9, 2009

पुराने घटक दलों को मनाना पहाड तोडने जैसा

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं संप्रग और राजग के सबसे बडे दलों क्रमश: कांग्रेस और भाजपा के लिए पुराने घटक दलों को मनाना पहाड तोडने जैसा मुश्किल काम होता जा रहा है। नए-पुराने सहयोगी दल इनकी राह में कांटे बिछाने में कोई कसर नहीं छोड रहे हैं। सहयोगी दल कांग्रेस और भाजपा से उनके कोटे की सीटें बढाने की मांग पर अडे हुए हैं। कांग्रेस के लिए बिहार में राजद और लोजपा को मनाना मुश्किल हो गया है। बिहार में लोजपा ने 16 सीटें देने की मांग कर परेशानियां बढाई हैं। पिछली बार बिहार की कुल 40 सीटों में से राजद 28, लोजपा आठ और कांग्रेस चार सीटों पर चुनाव लडी थी। झामुमो नेता शिबू सोरेन इस समय बीमार हैं, लेकिन उनके ठीक होने से पहले ही राजद ने पांच सीटों पर दावेदारी कर कांग्रेस के लिए परेशानी खडी कर दी है। महाराष्ट्र में राकांपा ने मुश्किलें बढाई हैं। लगभग एक दशक से मिलकर गठबंधन की राजनीति कर रही राकांपा ने बराबर- बराबर यानी 24 सीटें देने की मांग करके कांग्रेस की मुश्किल बढा दी है। कांग्रेस आंध्रप्रदेश में पिछली बार दो तिहाई बहुमत से सत्ता में लौटी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव से काफी पहले पृथक तेलंगाना राज्य के गठन की मांग पूरा नहीं होता देखकर तेलंगाना राष्ट्र समिति ने साथ छोड दिया। अब वह राज्य में अकेले चुनाव लडने को मजबूर हैं। कमोबेश, भाजपा की भी यही स्थिति है। भाजपा की प्रदेश इकाईयों और सहयोगी दलों के सीटों के बंटवारे को लेकर घमासान चल रहा है। पुराने फॉर्मूला के तहत महाराष्ट्र में लोकसभा की कुल 48 में से भाजपा 26 और शिवसेना 22 सीटों पर चुनाव लडती आई है। लेकिन दोनों दलों में बनी खाई अब तक पटी नहीं है। बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटों में से जद (यू) 24 और भाजपा (16) सीटों पर अब तक चुनाव लडती आई है। लेकिन इस बार जद (यू) ने लोकसभा की और दो सीटों पर दावा ठोककर भाजपा के लिए नई परेशानियां खडी कर दी हैं।

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