इस बार भाजपा की रणनीति हाथी के दांत जैसी है। जो बाहर से कुछ और दिख रही है जबकि अंदर कुछ और पक रहा है। देखने में ऎसा लग रहा है जैसे पार्टी अपनी समूची ताकत लोकसभा चुनाव में लगा रही हो, लेकिन अंदर का किस्सा एकदम अलग है। भाजपा ने पूरा ध्यान आंध्र प्रदेश और उडीसा विधानसभा चुनाव में केन्द्रित कर दिया है। उसे लगता है कि इन दोनों राज्यों में बेहतर विकल्प बनकर उभरते ही तीसरा मोर्चा और कांग्रेस को एक दांव में पटकनी देकर केन्द्रीय सत्ता हथियाना उसके लिए आसान होगा। भाजपा के रणनीतिकार यह मानकर चल रहे हैं कि इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव ही केन्द्रीय सत्ता का निर्धारण करेंगे। भाजपा को दो घटकों से लडना है। पहले से तैयार संप्रग और नया खडा हो रहा थर्ड फ्रंट। भाजपा जानती है कि संप्रग और थर्डफ्रंट एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। चुनाव नतीजों के बाद दोनों घटक हाथ मिलाकर भाजपा को सत्ता से दूर कर देंगे। इसलिए भाजपा की पहली रणनीति इनके मंसूबों पर पानी फेरने की है। इसके लिए भाजपा आंध्र प्रदेश और उडीसा विधानसभा चुनाव में इतनी सीट लाना चाहती है जिससे भाजपा के सहयोग के बिना सरकार न बन सके। भाजपा जानती है कि ऎसी स्थिति में तीसरा मोर्चा बिखर जाएगा क्योंकि लेफ्ट किसी कीमत पर भाजपा के सहयोग से सरकार नहीं बनने देगा और वह कांग्रेस का साथ देने के लिए आगे आया कि तीसरा मोर्चा बिखरा। तीसरा मोर्चा के बिखरते ही लडाई आमने-सामने की हो जाएगी उसमें भाजपा को लगता है कि मौजूदा राजनीति में सत्ता के लिए संप्रग के घटक दलों को तोडना कठिन नहीं होगा और सीट कम होने के बाद भी राजग को केन्द्रीय सत्ता पर बिठाया जा सकता है। इसके लिए भाजपा ने तैयारी भी शुरू कर दी है। सूत्रों ने बताया कि उडीसा में वह हिन्दुत्व का मुद्दा उछालकर बीजू जनता दल के नेता नवीन पटनायक को खलनायक साबित करने की योजना बना रही है वहीं, आंध्र प्रदेश में स्थानीय मुद्दों के साथ तेलंगाना राज्य के मुद्दे को गरमा कर वह टीडीपी और टीआरएस का खेल बिगाडने की सोच रही है। हालांकि आने वाले समय में भारतीय राजनीति किस करवट बैठती है फिलहाल कहना कठिन है, लेकिन तीसरे मोर्चे और संप्रग का किला ध्वस्त करने के लिए राजग जिस तरह की घेराबंदी कर रही है उससे चुनाव रोचक रहेगा।
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