Monday, May 11, 2009

कुर्सी पाने की खातिर कांग्रेस में मंथन शुरू

दिल्ली की कुर्सी पाने की खातिर कांग्रेस में मंथन शुरू हो गया है। कांग्रेस की पहली कोशिश यही है कि जैसे भी अपने पुराने साथियों को ही साथ लेकर सरकार बनाई जाए, यदि ऎसा नहीं होता है तब जाकर दूसरे दलों से सम्पर्क साधा जाए। सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी चाहते हैं कि सरकार तभी बनाई जाए जब संख्या बल पूरी तरह से जुट जाए। कांग्रेस का पहला टारगेट यही है कि जैसे भी 150 का आंकडा हर हाल में पार करना है जिसकी कि वे पूरी उम्मीद लगाए हुए हैं।कांग्रेस के रणनीतिकार आजकल आ रहे आकलनों से भी खुश हैं। आकलन उनके लक्ष्य 150-160 के करीब ही आ रहे हैं। बाकी सहयोगियों को लेकर भी वे निश्चिंत हैं। रणनीतिकारों को लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में इस बार पार्टी को 15 के आसपास सीटें मिलनी चाहिए। इसी प्रकार राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ से वह सीटें बढी हुई मान रही है। पंजाब, गुजरात, हिमाचल और उत्तराखंड में उसे भाजपा से ज्यादा सीटों की उम्मीद है। दिल्ली, केरल और हरियाणा में वह एकतरफा मान रही है। मतलब सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा। पश्चिम बंगाल, नार्थईस्ट में भी कांग्रेस फायदा मान रही है। महाराष्ट्र व आंध्रप्रदेश में कांग्रेस पिछला करिश्मा दोहराने की उम्मीद लगाए हुए है। तमिलनाडु को लेकर कांग्रेस चिंतित जरूर है लेकिन उसे लग रहा है कि उडीसा व कर्नाटक इसकी भरपाई करेगा। कांग्रेस मान रही है कि यदि 150 से अधिक सीटें आती हैं तो सरकार बनाने की राह आसान हो जाएगी।कांग्रेस ने कहना भी शुरू कर दिया है कि राष्ट्रपति को पहले बडे दल को मौका देना चाहिए। एक बार मौका मिलने के बाद तीसरे-चौथे मोर्चा के कुछ दल अपने आप ही साथ आ जाएंगे। कांग्रेस सपा, राजद व लोजपा को 40 के आसपास सीटें लाने की स्थिति में मान रही है। कांग्रेस के रणनीतिकारों का कहना है कि पिछली बार वामदलों की 60 से अधिक सीटें थी। इस बार उनकी 20 से 25 जो भी सीटें कम होंगी वह उनको ही मिलेंगी। यानी कि वामदलों को होने वाला घाटा उनके लिए चिंता का सबब नहीं है। बाकी छोटे दल पिछली बार की तरह ही सत्ता के साथ जुडना चाहेंगे। चिंता इस बात की है कि यदि तमिलनाडु ने धोखा दे दिया तो ऎसे हालात में संख्या बल कहां से लाएंगे। कांग्रेस के रणनीतिकार इस रणनीति में लगे हैं कि यदि ऎसा होता है तो नीतीश से पहले जयललिता को साथ लेने की कोशिश की जाए। हालांकि जयललिता ने कोई संकेत नहीं दिए हैं फिर भी जानकार मान रहे हैं कि जयललिता राजग से ज्यादा संप्रग को महत्व देंगी।

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