भाजपा ने चौथे और पांचवें चरण के चुनाव में चीनी के आसमान छूते दाम को मुद्दा बनाकर कांग्रेस पर हमले तेज कर दिए हैं। विपक्षी पार्टी का आरोप है कि संप्रग सरकार ने चुनावी फंड के लिए व्यापारियों से मिलीभगत की और 20 लाख टन आयातित चीनी पर दो रूपए प्रति किलो की रिश्वत खाकर पूरे चार सौ करोड जुटाए। सीमेंट और स्टील के ऊंचे दाम के पीछे भी पैसे का खेल है। सरकार ने जानबूझकर कार्टेलाइजेशन के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। चीनी आयातक, सीमेंट-स्टील कंपनियां और सरकार मिलकर जनता को लूट रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर के अनुसार, अटल सरकार ने छह साल तक कीमतें नहीं बढने दी थी। इस बार आडवाणी सत्ता में आए तो उनकी सरकार तीन माह में दाम पर अंकुश लगा देगी।संप्रग सरकार की गलत नीतियों के कारण मीठी शक्कर कडवी हो गई है। देश के कुछ हिस्सों में चीनी के दाम तीस रूपए प्रति किलो तक हो गए हैं जबकि गत जनवरी में कीमत बीस रूपए थी। चीनी जैसी आवश्यक वस्तु के दाम सौ दिन में पचास फीसदी बढ गए, इसके पीछे पैसे का हेरफेर और मांग-आपूर्ति के सही आकलन में सरकार का नाकाम रहना है। इस वर्ष गन्ना किसानों ने रकबा घटा दिया जिससे उत्पादन भी कम हुआ। इसके बावजूद सरकार निर्यात पर रोक नहीं लगा रही जो हैरत की बात है। बाजार विशेषज्ञों की मानें तो करोडों का घोटाला हुआ है। भाजपा इस मुद्दे को उठाकर संप्रग को बेनकाब करेगी।चीनी की मार से कांग्रेस को बेहाल करने की रणनीति का खुलासा करते दूसरे भाजपा प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने बताया कि विज्ञापन तैयार करा लिए गए हैं। एकाध चुनाव आयोग की मंजूरी के लिए भेजा गया है जबकि चीनी का हर कोई मोहताज, अंधेर नगरी चौपट राज थीम का विज्ञापन कल-परसों जारी हो जाएगा। आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं मसलन चीनी, दूध, फल-सब्जी के रोजाना बढते दाम के लिए कांग्रेस को कोसते हुए उन्होंने अपनी दिक्कतें भी गिनाई। कहा-आज के दाम के हिसाब से विज्ञापन तैयार कराते हैं या चार्ट बनवा लेते हैं और दूसरे दिन कीमत फिर उछल जाती है। मुश्किल यह हो गई है कि चुनाव आयोग की मंजूरी 27 रूपए प्रति किलो चीनी का भाव दर्शाते विज्ञापन पर मिलती है और दाम हो गए तीस रूपए। इसे ध्यान में रखकर उन्होंने तय किया है कि विज्ञापन में दाम फाइनल न करके हर दिन के हिसाब से मिटाते-लिखते रहेंगे।
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