भौगोलिक क्षेत्रफल एवं प्रति व्यक्ति आय के आधार पर केन्द्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी ३०.५ प्रतिशत से बढ़ाकर ४० प्रतिशत करने और राजस्थान की विषम परिस्थिति को देखते हुये विशेष दर्जा देने का अनुरोध किया है।आयोग के अध्यक्ष डा.विजय एल केलकर तथा सदस्यों के साथ राज्य सरकार के प्रतिनिधियों की बैठक में गहलोत ने कहा कि १९७१ की जनगणना की अपेक्षा २००१ की जनगणना के आधार पर राज्यों के मध्य उनके कर हिस्से का निर्धारण होना चाहिये।उन्होंने राज्य की विषम भौगोलिक, सामाजिक एवं आॢथक स्थिति के मद्देनजर प्रदेश को विशेष दर्जा देकर जनता के साथ पूरा न्याय करने का आग्रह किया। उन्होंने वित्त आयोग को बताया कि आम जनता तक सेवाओं और सुविधाओं को पहुंचाने के लिए अन्य राज्यों की तुलना में राजस्थान में अधिक लागत आती है।मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले साठ सालों में कमोबेश ५५ वर्ष तक राज्य में अकाल एवं सूखे की स्थिति को देखते हुए पेयजल के लिए राज्य को विशेष दर्जा मिलना चाहिये। राज्य पेयजल की दृष्टि से गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। राज्य के २३७ में से मात्र ३२ ब्लॉक ही सुरक्षित बचे है तथा भूजल का दोहन लगभग १३७ प्रतिशत है। यह उत्तर प्रदेश से दुगना है।राजस्थान में शीतलहर एवं पाले के कारण फसलों को हुए नुकसान की चर्चा करते हुए गहलोत ने राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से सहायता आरंभ करने की जरूरत बताई। उन्होंने आपदा राहत कोष के तहत दी जाने वाली सहायता में केन्द्र एवं राज्य सरकार के हिस्से के मौजूदा अनुपात को ७५-२५ प्रतिशत से बढ़ाकर ९०-१० प्रतिशत किये जाने की मांग की।आयोग के अध्यक्ष डा. विजय केलकर ने वित्तीय व्यवस्था में सुधार के लिए राज्य सरकार के कार्यों की सराहना की और कहा कि राजस्व एवं वित्तीय घाटे को कम करने के प्रयास किये जाने चाहिए।उन्होंने राज्य सरकार के ज्ञापन में महत्वपूर्ण मुद्दों के संदर्भ में विचार करने का भरोसा दिलाया।
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