राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पहले दिन तमाम राज्यों के भाजपा अध्यक्षों ने हार-जीत का लेखा जोखा रखा लेकिन राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष रिपोर्टिग शुरू होने से पहले सभास्थल से रवाना हो गए। उन्होंने तर्क दिया कि वे अपना इस्तीफा सौंप चुके हैं इसलिए उनके रहने का कोई मतलब नहीं जबकि नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को पूरे दिन निगाहें तलाशती रह गई लेकिन वे न दिखीं। पता चला कि वे विदेश में हैं लेकिन यहां नहीं आएंगी इस बारे में अधिकृत सूचना राज्य या केंद्र स्तर पर किसी के पास न थी। इतना ही नहीं चुनाव के संचालक रहे राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष भी गैरमौजूद थे। माथुर के चले जाने के बाद संगठन सचिव प्रकाश चंद्र ने हार के कारणों के साथ रिपोर्ट पेश की। सूत्रों के अनुसार, संगठन सचिव ने यह कहकर निराशाजनक परिणामों का गम हल्का करने की कोशिश की कि विधानसभा चुनाव के मुकाबले पार्टी के मत प्रतिशत में बढोतरी हुई है। बावजूद इसके पराजय मिली जिसकी एक बडी वजह बसपा के वोट बैंक का कांग्रेस के खाते में चले जाना भी है। हार के तीन मुख्य बिंदु गिनाते प्रकाशचंद्र ने बताया कि लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सात सांसदों को दोबारा मैदान में उतारा। यह गलत फैसला था क्योंकि क्षेत्र में इन सांसदों के खिलाफ हवा बह रही थी। कई सीटें परिसीमन के बाद बदले समीकरणों के कारण पार्टी के हाथ से निकल गई जबकि तीसरी वजह कार्यकर्ताओं में व्याप्त निराशा थी। विधानसभा चुनाव में मात खा चुके कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा सके जिस कारण वे पूरे मन से नहीं जुटे।नतीजा उल्टा हो गया। पिछली बार चार सीटों पर सिमटी कांग्रेस ने अबकि बीस सीटें जीत लीं जबकि भाजपा 21 से खिसकर तीन पर पहुंच गई और एक सीट निर्दलीय की झोली में चली गई। कार्यकारिणी में प्रकाशचंद्र के अलावा राजस्थान भाजपा से गुलाब कटारिया, घनश्याम तिवाडी, कैलाश मेघवाल, किरण माहेश्वरी, जसकौर मीणा और मानवेंद्र सिंह शामिल हुए। मध्य प्रदेश की रिपोर्टिग नरेंद्र सिंह तोमर, गुजरात की पुरूषोत्तम रूपाला, दिल्ली की ओमप्रकाश कोहली, उत्तर प्रदेश की रामरमापति त्रिपाठी और उत्तराखंड की ब“ाी सिंह रावत ने की। तोमर ने कुछ सीटें हाथ से निकल जाने के बारे में सफाई दी कि प्रत्याशियों का अति आत्मविश्वास उन्हें ले डूबा। इसके अलावा हारी हुई सीटों में अधिकांश एससी-एसटी थीं जहां गोंडवाना पार्टी और बसपा फैक्टर भी कांग्रेस का मददगार साबित हुआ। रूपाला ने अच्छी बातें कहीं जबकि कोहली ने कहा मनमोहन सिंह को सिंह इस किंग के रूप में पेश करने से सिख भाजपा से दूर चले गए। जबर्दस्त खींचतान झेल रहे उत्तराखंड अध्यक्ष रावत ने सुझाव दिया कि बिहार फार्मूले की तर्ज पर गुप्त मतदान कराकर राज्य में मुख्यमंत्री का विवाद निपटाया जाए।
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