पार्टी में हाशिए पर खड़े किए गए यशवंत सिन्हा ने दिल्ली पहुंचकर अपने तीखे तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। सिन्हा ने दो टूक कहा कि उन्होंने जीवन में कभी पद मांगा नहीं, छोड़ा ही है। अपने इस्तीफे और कार्यकारिणी की खबरों के लीक होने पर उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े किए। सिन्हा ने साफ किया कि उन्होंने किसी व्यक्ति विशेष को निशाना नहीं बनाया था, लेकिन लोकसभा चुनाव में हार की जवाबदेही तय करने, पार्टी में कामराज योजना लागू करने के अपने मुद्दों पर पूरी तरह कायम हैं। भाजपा कार्यकारिणी में मचा घमासान अभी शांत भी नहीं हुआ था कि लोकसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे चुके यशवंत सिन्हा ने दिल्ली पहुंचते ही मोर्चा खोल दिया है। सिन्हा ने कहा कि वे अपने इस्तीफे में उठाए गए सभी मुद्दों पर वे कायम हैं और उन्हें आशा है कि चिंतन बैठक में उन पर पार्टी चर्चा भी करेगी। भाजपा नेता ने कहा कि हार की जिम्मेदारी सामूहिक है और सभी को उसे लेना चाहिए। उन्होंने खुद इस्तीफा दिया है। उन्हें उसके मंजूर होने का कोई अफसोस भी नहीं है। उन्हें मालूम थी कि वह मंजूर ही होगा। लेकिन उन्हें उसके मंजूर होने की खबर मीडिया से ही मिली। अभी तक पार्टी ने उनको सूचना नहीं दी है। इससे उनकी इस्तीफा मंजूर होने की निराशा भी झलकी। हालांकि उन्होंने पूरे जोर से कहा कि उन्होंने कभी पद की राजनीति नहीं की। वीपी सिंह सरकार में उन्हें राज्यमंत्री बनने की पेशकश की थी, लेकिन वे राष्ट्रपति भवन से वापस लौट आए थे। सिन्हा ने कहा कि उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया है और आगे भी करेंगे। जो लोग उन्हें हवाई नेता कहते हैं वे गलतफहमी में हैं। वे तीसरी बार लोकसभा में चुनकर आए हैं और जब चाहें तब दिल्ली में दस हजार लोग खड़े कर सकते हैं। सिन्हा नौकरशाह रहते हुए डीटीसी के चेयरमेन रहे थे और सार्वजनिक जीवन में आने के बाद उसकी यूनियन के नेता भी रहे। अब वे फिर से डीटीसी के मजदूरों के लिए जमीन पर उतरने जा रहे हैं। झारखंड में जद (यू) के साथ गठबंधन के सवाल पर उन्होंने कहा कि दोनों तरफ कुछ समस्याएं है। इन्हें गंभीरता लेना चाहिए और बैठकर बात करनी होगी। उन्होंने दो टूक कहा कि सभी को गठबंधन धर्म के अनुसार चलना पड़ेगा।
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