लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार होने वाली माकपा केन्द्रीय समिति की बैठक में घमासान होने के आसार हैं। वजह, चुनाव नतीजों के बाद अभी तक पार्टी स्तर पर जितनी भी बैठकें हुई उसमें हार का ठीकरा सीधे तौर पर माकपा नेतृत्व एवं बंगाल, केरल के मुख्यमंत्रियों पर फोडा गया है। ऎसे में 20, 21 जून की बैठक में चर्चा आपसी अंत:कलह, सहयोगी दलों की नाराजगी और बंगाल में ममता बनर्जी से छुटकारा पाने का इलाज ढूंढा जाएगा। चुनाव परिणाम के बाद माकपा के भीतर जिस तरह का द्वंद शुरू हुआ है उससे रणनीतिकार परेशान हैैं। आगामी विधानसभा चुनाव के पहले माकपा के सामने कई मोर्चो से निपटने की चुनौती है। सबसे अहम मसला पार्टी का अंदरूनी कलह का है। सूत्रों के अनुसार माकपा में शायद पहली बार नेतृत्व को चुनौती दी गई है। चुनाव में हार के लिए माकपा महासचिव पर को सीधे जिम्मेदार ठहराया जाना पार्टी के अंतरिक कलह को उजागर कर देती है। सूत्रों ने बताया कि 19 जून को पोलित ब्यूरो की बैठक में केन्द्रीय समिति में चर्चा के लिए मुद्दे छांटे जाने हैं। पोलित ब्यूरो दो खेमों में बंटा हुआ है। ऎसे में केन्द्रीय समिति में चर्चा के लिए छांटे जाने वाले मुद्दों में विवादित विषयों की अधिकता रहेगी। चर्चा के मुख्य केन्द्रबिन्दु में ममता बनर्जी के रहने की संभावना है। बंगाल में तृणमूल के पक्ष में जिस तरह के अप्रत्याशित नतीजे आए हैं उससे माकपा और उसके सहयोगियों की सांसे फूली हुई हंै। उन्हें लग रहा है कि यदि ममता बनर्जी की यह बढत कायम रही तो डेढ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में लेफ्ट का सफाया हो जाएगा। माकपा के सामने सबसे बडा यक्ष प्रश्न बनकर इस समय तृणमूल कांग्रेस खडी है। तीन दशक से कदमताल मिलाकर चलने वाले सहयोगी भाकपा, फारवर्ड ब्लाक और आरएसपी ने भी आंखें दिखानी शुरू कर दी हैैं। 20, 21 जून को होने वाली केन्द्रीय समिति की बैठक में माकपा को जहां आपसी विवाद का हल खोजना है वहीं, सहयोगी दलों का साथ बनाए रखने की तरकीब एवं तृणमूल कांग्रेस को रोकने का मंत्र भी तलाशना होगा।
No comments:
Post a Comment