देश में उच्च शिक्षा की बदहाली और उसे पटरी पर लाने में इस क्षेत्र की नियामक संस्थाओं की नाकामी को देखते हुए केन्द्र सरकार ने प्रो. यशपाल समिति की सिफारिशों पर सौ दिन के भीतर अमल शुरू करने का फैसला किया है। समिति ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) समेत सभी संस्थाओं को भंग करके उच्च और व्यावसायिक शिक्षा को राष्ट्रीय उच्च शिक्षा एवं शोध आयोग की परिधि में लाने को कहा है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने बुधवार को प्रख्यात शिक्षाविद से रिपोर्ट ग्र्रहण करने के बाद ऎलान किया कि सुधार इंतजार नहीं कर सकते और देश में उच्च शिक्षा ढांचे के पुनर्गठन के लिए इन सिफारिशों पर 100 दिन के भीतर अमल शुरू कर दिया जाएगा। कोशिश की जाएगी कि सिफारिशें सर्वसम्मति से लागू हो। प्रो. यशपाल ने बताया कि समूचे उच्च शिक्षा क्षेत्र के इस शीर्ष निकाय को भी चुनाव आयोग के समान संवैधानिक दर्जा हासिल होगा।समिति ने विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता देने व आईआईटी व आईआईएम को विश्वविद्यालय के रूप में विकसित करने की सिफारिश की है। "उच्च शिक्षा का पुनरूद्धार एवं कायाकल्प" नामक इस रिपोर्ट में दिए गए सुझावों को महत्वपूर्ण बताते हुए सिब्बल ने उम्मीद जताई कि देश भी इन्हें मंजूर करेगा। हम इस पर आमराय बनाने की दिशा में कदम उठाएंगे। सरकार ने 2008 में प्रो.यशपाल की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था। ये है सिफारिशें* यूजीसी, एमसीआई, एआईसीटीई भंग हों* इनकी जगह संवैधानिक दर्जे वाला शीर्ष निकाय राष्ट्रीय उच्च शिक्षा एवं शोध आयोग बने * इसके अध्यक्ष, सदस्यों का चयन पीएम, नेता प्रतिपक्ष व मुख्य न्यायाधीश की समिति करे* यह उच्च शिक्षा संस्थानों को सहूलियतें देने के साथ उनके कामकाज पर नजर रखे* भंग की गई संस्थाओं के स्टाफ को अन्य जगह समायोजित किया जाएगा* विश्वविद्यालयों को पूर्ण स्वायत्तता दी जाए* वे स्व नियंत्रित निकाय की तरह काम करेंगे* चिकित्सा व इंजीनिरियरिंग पाठ्यक्रमों समेत सभी पाठ्यक्रम खुद बनाएं व संचालन करें* समस्त अकादमिक जिम्मेदारियां निभाएंगे* डीम्ड विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कड़ा अंकुश लगाने की सलाह* विदेशी विश्वविद्यालय खोलने के बारे में सावधानी बरतेंंये हैं खामियां * उच्च शिक्षा में बिखराव आ गया* संस्थाओं व विषयगत बदलावों के बीच दूरी * प्रक्रियागत जटिलताएं और नौकरशाही हावी होने से शिक्षा में नए रूझान और प्रगति नहीं
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