Tuesday, June 23, 2009

पार्टी में ही वरूण उपेक्षित

अपने कथित मुस्लिम विरोधी भाषण को लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के मुख्य कारणों में गिने जाने से परेशान वरूण गांधी ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में स्वयं को एकदम उपेक्षित पाया। बैठक में केवल उनकी मां मेनका गांधी ही उनका बचाव करतीं दिखीं और अधिकतर लोग उनसे कन्नी काटते नजर आए। वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी तक ने पार्टी के दो मुस्लिम नेताओं मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन द्वारा वरूण पर किए गए प्रहारों का समर्थन सा करते हुए अपने ''मार्गदर्शन संबोधन'' में पार्टीजनों को आगाह किया कि वे हिन्दुत्व की मुस्लिम विरोधी संकीर्ण व्याख्या नहीं करें। माना जा रहा है आडवाणी ने यह बयान देकर वरूण के भाषण से स्वयं को अलग करने का प्रयास किया है। दिलचस्प बात यह रही कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के ऐन समय हैदराबाद की अपराध जांच प्रयोगशाला ने वरूण के कथित भड़काऊ भाषणों की सीडी की सत्यता के बारे में अपनी रिपोर्ट पीलीभीत प्रशासन को सौंप दी। कहा जाता है कि रिपोर्ट में इस सीडी को सही बताया गया है, जबकि वरूण का दावा है कि ''राजनीतिक साजिश'' के तहत सीडी से छेड़-छाड़ की गई है। नकवी और हुसैन ही नहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और महाराष्ट्र भाजपा के शीर्ष नेता गोपीनाथ मुंडे ने भी बैठक में बेटे के बचाव में मेनका द्वारा कथित रूप से दिए गए इस बयान का विरोध किया कि मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देते। इन तीनों नेताओं ने कहा कि पार्टी द्वारा यह रूख अपनाना घातक होगा कि एक खास समुदाय ने भाजपा को वोट नहीं दिया इसलिए उसे नजरअंदाज किया जा सकता है।यही नहीं राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपनाए गए राजनीति प्र्रस्ताव में भी वरूण के कथित मुस्लिम विरोधी विचारों से पार्टी को अलग दिखाने का प्रयास किया गया है। इसमें कहा गया, मजहबी राज्य या किसी भी प्रकार की कट्टरता हमारे मूल्यों के प्रतिकूल है। हिन्दू धर्म अथवा हिन्दुत्व को पूजा आचार व्यवहार या अतिवादी संकीर्णता के दायरों में नहीं देखा समझा जा सकता है और न ही इसे इस प्रकार से प्रकट करने की आवश्यकता है।प्रस्ताव में हिन्दुत्व को ''समावेशी अवधारणा'' बताते हुए कहा गया कि इसमें सभी के प्रति समान व्यवहार का विचार सन्निहित है चाहे वे किसी भी धर्म के हों। बैठक में मेनका ने तर्क दिया था कि मुस्लिम भाजपा के मुख्य वोट बैंक नहीं हैं इसलिए यह दोष नहीं लगाया जा सकता कि वरूण के भाषणों के कारण भाजपा को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है।वरूण गांधी दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पहले दिन शनिवार को तो बैठक में आए लेकिन संभवत: अपने प्रति उपेक्षा के आभास के चलते दूसरे दिन अनुपस्थित रहे।

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