प्रधानमंत्री बनने का सपना लाल कृष्ण आडवाणी ने तो देखा ही था, मायावती इस उम्मीद में थी कि घर बैठे उनका सपना पूरा हो जाएगा क्योंकि देश को उनकी जरूरत है। मलिका-ए-हिंदुस्तान बनने का मायावती का खवाब खुद उन्होंने और उनके आस पास मौजूद उनके नवरत्नों ने तोड़ दिया और मायावती शेखचिली साबित हुई। मगर मायावती ने शायद इतिहास ठीक से नहीं पढ़ा है। पढ़ा होता तो जानती कि प्रधानमंत्री बनने के लिए बहुमत ही नहीं छवि की जरूरत भी होती है और मायावती ने उत्तर प्रदेश का चुनाव भले ही जीता हो मगर अपनी छवि काफी धूमिल करवा रखी है। मायावती जवाहर लाल नेहरू की गद्दी पर बैठना चाहती है मगर उन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी थी और दुनिया के बड़े से बड़े ताकतवर अंग्रेजों से आंख मिला कर बात करते थे। लाल बहादुर शास्त्री की कुर्सी पर वे बैठना चाहती हैं तो उन्हें पहले शास्त्री जी की तरह पारदर्शी, ईमानदार और सादा होना सीखना पड़ेगा। इंदिरा गांधी जैसी दूरदृष्टि तो मायावती के पास तो नहीं हैं लेकिन अपने फैसलों को सर्वोच्च ठहराने की उनकी जिद निराली है। राजीव गांधी राजनैतिक लिहाज से कच्चे थे मगर देश का ख्याल उन्हें बहुत था। विश्वनाथ प्रताप सिंह भी भले ही विश्वासघात कर के राजनीति में शिखर पर आए हों, उन्होंने राजनीति में अपनी स्थिति अर्जित की थी और उस समय के महाबली राजीव गांधी से अकल्पनीय बगावत कर के जीतने का हौसला भी उनमें था। नरसिंह राव और मनमोहन सिंह की विद्वत्ता के सामने मायावती कहीं नहीं टिकती। इस चुनाव में मायावती का हवाई आंकड़ा यह था कि उनके कम से कम 50 सांसद बनेंगे और 50 का सहयोग वाम मोर्चा तथा अन्य दलों से मिलेगा। सौ सीटे पाकर देवेगौड़ा और गुजराल की ही तरह सही वे देश की पहली दलित महिला प्रधानमंत्री बन जाएंगी। मायावती के चमचे उन्हें लगातार विश्वास दिलाते रहे कि उनमें इंदिरा गांधी बनने के सारे गुण हैं। मायावती इस पर भरोसा भी करती रही। इंदिरा गांधी के साथ आपातकाल में जो हुआ था वही मायावती के साथ हुआ है कि आम जनता से उनका रिश्ता टूट गया है। वे अपने आपको चरम शक्ति समझने लगी है। किसी के लिए उनके मन में सम्मान नहीं रह गया है। वे अपनी मूर्तियां तो बनवा ही रही हैं, अपने कार्यकर्ताओं को दर्शन वे देवी के अंदाज में ही देती हैं। इस लोकसभा चुनाव में मायावती ने अपनी औकात जाहिर कर दी और हरिशंकर तिवारी, डीपी यादव, गुड्डू पंडित, शेखर तिवारी, अन्ना शुक्ला, मुख्तार अंसारी, अखिलेश दास और ददन मिश्रा जैसे संदिग्ध चिरत्रों को अपना नवरत्न बना कर घूमती रही। ये नवरत्न मायावती का नाश ही करेंगे और कर रहे हैं।
No comments:
Post a Comment